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Written By WD

एक यंत्र माँओं के लिए

एक यंत्र माँओं के लिए -
- गगनदीप कौ

SubratoND
ऑफिस के मीटिंग रूम में बैठे-बैठे भी आपको यही चिंता है कि नन्ही मीनू फिर से बाथरूम में जाकर नल के नीचे तो नहीं बैठ गई? या कि आज शांताबाई ने पुनीत को ठीक से खाना खिलाया होगा या नहीं? या फिर कहीं ऋचा दरवाजा बंद किए बिना तो नहीं सो गर्ई? घर से जुड़ी ऐसी कई चिंताओं के लिए अब अभिभावकों, खासतौर पर कामकाजी मम्मियों के लिए कुछ उपकरण बाजार में हैं। दफ्तर में या कहीं बाहर बैठे-बैठे भी आप घर पर नजर रख सकते हैं। लो अब रसोई से लड्डू चुराते राजू महाशय को भी सतर्क तो रहना ही होगा, क्योंकि उनपर नजर रखने के लिए आ रहे हैं आधुनिक निगरानी यंत्र।

टेक्नोलॉजी अब विशेष तौर पर कामकाजी माँओं की सहायक बन कर आई है। इनमें से बहुत-सी माँएँ अपने घर को हाईटेक घर-निगरानी यंत्र से लैस कर रही हैं ताकि वे अपने दफ्तर से ही अपने बच्चों व घर पर नजर रख सकें। ऑफिस जाते वक्त अपने बच्चे को पूरे दिन के लिए नौकरानी के हवाले पीछे घर पर छोड़ जाने भर का ख्याल ही दिनभर मुझे परेशान कर देता। साथ ही मेरे लिए अपना पेशेवर काम छोड़ देने का भी सवाल ही नहीं उठता था। सौभाग्य से उन्हीं दिनों मेरे पति ने एक ऐसा निगरानी यंत्र खोज निकाला, जिसके जरिए मैं अपने दफ्तरसे ही अपने एक साल के बच्चे पर नजर रख सकती थी। इसके लिए मुझे बस इंटरनेट पर जाना भर ही काफी था।'

मुंबई की चौंतीस वर्षीय सुप्रिया सुले कहती हैं। ऐसे ही यंत्र बनाने वाली एक कंपनी के बिजनेस डेवलपमेंट मैनेजर विहंग कथे कहते हैं, 'पिछले तीन-चार सालों में इन घरेलू निगरानी यंत्रों की बिक्री 5 से 10 प्रश तक बढ़ी है, खासकर मुंबई में हुए बम धमाकों के बाद। इस सबका प्रमुख कारण है अपराधों में वृद्धि होना और सुरक्षा को लेकर लोगों का और अधिक चौकन्ना होना। फिर पति-पत्नी दोनों के कमाऊ होने के चलते, बहुत से दंपतियों ने अपने परिवार की सुरक्षा को एक बुनियादी जरूरत के बतौर देखना शुरू कर दिया।'

घर-परिवार की सुरक्षा व अन्यान्य कारणों से ऐसे निगरानी यंत्र खरीदना चाहने वाली कामकाजी माताओं और अन्य महिलाओं के लिए बाजार में बहुतेरे विकल्प उपलब्ध हैं। महिलाओं द्वारा आमतौर पर लिया जाने वाला विकल्प आईपी-डीवीआर सिस्टम है। इस सिस्टम को अपने घर पर लगा लेने केबाद आपको एक खास वेबसाइट पर जाना होता है। इसके बाद, अपने घर लगे इस सिस्टम के जरिए आप अपने घर में जो-जो हो रहा है, उस पर अपनी नजर थामे रख सकती हैं। हाँ, इसकी अच्छी खासी कीमत जरूर आपको चुकानी पड़ती है- 30,000 से लेकर 50,000 रुपए तक ।

दूसरा विकल्प है- सीसीटीवी (क्लोज्ड सर्किट टेलीविजन)। आमतौर पर बैंक और व्यावसायिक संस्थान इसका इस्तेमाल करते हैं। हालाँकि घरेलू चौकसी के लिए भी इसे उपयोग में लाया जा सकता है, लेकिन अड़चन यह है कि आपका ऑफिस आपके घर से ज्यादा दूर नहीं होना चाहिए। एक मुश्किल और है- इसे आपकी टेबल (डेस्क टॉप) पर लगाया जाता है, ऐसे में आपके ऑफिस की व्यवस्था बदल जाने पर इसे आपके नए डेस्क टॉप पर फिर से इंस्टाल करना पड़ेगा। तीसरा विकल्प है वेबकैम। यह सस्ता है (कीमत 1500 रुपए से शुरू) और इसे लगाना आसानहोता है। यह केवल इंटरनेट पर ही काम करता है।

गुड़गाँव की एक मीडिया कंपनी में काम करने वाली 30 वर्षीय मनीषा सिंह का अनुभव है, 'मेरी बेटी का वजन दो-तीन महीनों के अंतराल में बहुत ज्यादा कम हो गया है और वह चिड़चिड़ी भी रहने लगी। मुझे शक हुआ कि नौकरानी मेरी बच्ची को ठीक से खिला-पिला नहीं रही है। इसलिए मैंने वेबकैम लगाया। फिर जब मैं आश्वस्त हुई कि ऐसा नहीं है तो मैंने इसे रोजाना के हिसाब से इस्तेमाल करना छोड़ दिया। लेकिन अभी भी मैं कोई दस दिन में एक बार इसके जरिए अपने घर की हलचल पर नजर रख लेती हूँ। मनीषा आगे कहती हैं कि उन्होंने इसे रोज-रोज इस्तेमाल करना छोड़ दिया, क्योंकि इससे उनके काम में विघ्न पड़ता था।

'मुझे मानो इसकी लत-सी लग गई थी और मैं घंटों अपने घर की तस्वीरें ही देखती रहती। हफ्ते भर बाद जाकर मुझे यह एहसास हुआ कि ऐसे तो काम नहीं चलेगा और मुझे अपनी नौकरानी परविश्वास तो रखना ही पड़ेगा।' हाल के सालों में शहरी क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति आय बढ़ी है। नतीजतन लोगों की खरीददारी की क्षमता भी बढ़ी है। धनी और निर्धन के बीच कमाई की इस खाई के बढ़ने पर उपजी सुरक्षा की इस जरूरत के चलते लोगों की मानसिकता 'मेरे लिए नहीं' से बदलकर 'मेरे लिए और मेरे परिवार की सुरक्षा के लिए' हुई है।

निगरानी यंत्र व्यवसाय की एक प्रमुख कंपनी के सीईओ शांतनु चौधरी का कहना है, 'संयुक्त परिवारों के टूटने व इसके परिणाम स्वरूप शहरों में नाभिकीय (छोटे) परिवारों की संख्या बढ़ने के चलते भी इस तरह के उपकरणों की माँग बढ़ी है। चिंताकुल अभिभावकों को लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि घर की खबर लेते रहना यूँ तो ठीक है, पर घड़ी इस फिक्र में गुजारना उनके कामकाजी जीवन पर कहीं उलटा असर न डालने लग जाए। (वीमेन्स फीचर सर्विस)