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Written By वार्ता
Last Modified: ओंकारेश्वर (वार्ता) , गुरुवार, 8 अक्टूबर 2009 (16:04 IST)

सैकड़ों लोगों को बचाने वाला बेच रहा है प्रसाद

सैकड़ों लोगों को बचाने वाला बेच रहा है प्रसाद -
पिछले 18 वर्षो से नर्मदा नदी में डूबने वाले असहाय 252 लोगों के प्राण बचाने वाले कैलाश भील अपने बच्चों का पेट पालने के लिए चने-चिरोंजी व नारियल की छोटी-सी दुकान चला रहा है।

कहने को तो कैलाश होमगार्ड में जवान के रूप में पदस्थ है, लेकिन वर्ष में 6 माह की नौकरी करने के बाद 6 माह यहाँ कोटि तीर्थ घाट पर चने-चिरोंजी बेच कर अपनी जीविका चला रहा है। देश की बड़ी नदियों में से एक नर्मदा नदी से इतनी बड़ी संख्या में लोगों के प्राण बचाने वाले कैलाश ने कहा कि उसका जन्म नर्मदा किनारे तुकाराम भील के गरीब परिवार में हुआ था। बचपन में श्रद्धालुओं द्वारा नर्मदा में चढ़ाए पैसे और नारियल ढूढते-ढूढते वह एक अच्छा तैराक बन गया। 10वीं पास करने के बाद उसने कोटि तीर्थ घाट पर नारियल, प्रसाद आदि की दुकान शुरू कर ली।

12 अगस्त 1991 को जब कैलाश अपनी दुकान पर बैठा था तब नर्मदा की बाढ़ में एक बच्चे को डूबते देखा। घाट पर मची चीख-पुकार ने उसका मन विचलित कर दिया और तुंरन्त उफनती नर्मदा में छलाँग लगा दी और किनारे से लगभग 30 फिट दूर से बालक को सकुशल बाहर निकाल लाया।

बड़वाह निवासी सुखदेव के 10 वर्षीय पुत्र सेवकराम को डूबने से बचाने में कैलाश को आनंद की अनुभूति हुई और तब से उसने संकल्प लिया कि उसके घाट पर मौजूद रहते कोई भी यहाँ डूबकर नहीं मरेगा।

कैलाश के जीवन में एक भयानक क्षण ऐसा भी आया जब दूसरों की जान बचाते-बचाते खुद की जान भी खतरे में पड़ गई। उसने बताया कि एक बार इन्दौर निवासी बाबूलाल, सीताबाई और अनिता को डूबने से एक साथ बचाते हुए वह स्वयं भी गोता खा गया और उसके पेट में भी पानी भर गया, लेकिन हिम्मत नहीं हारे और जैसे-तैसे उन तीनों को किनारे पर ले आया।

एक बार राज्य सरकार से गणतंत्र दिवस पर जीवन रक्षा पदक व 15 हजार रुपए नगद प्राप्त कर वह सम्मानित भी हो चुका है। गत दिनों एक सिगरेट निर्माता कंपनी ने उसे रेड एन्ड व्हाइट पुरस्कार से भी सम्मानित किया तथा इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में प्रदेश के स्थानीय शासन एवं नगरीय कल्याण मंत्री बाबूलाल गौर ने अपना एक माह का वेतन 15 हजार रुपए कैलाश भील को भेंट स्वरूप प्रदान किया था।

एक बार तो लोगों की प्राण रक्षा के इस भयानक दौर में एक चट्टान से टकराने के कारण उनके आगे के दाँत भी टूट गए, लेकिन करीब 35 वर्ष के कैलाश ने लोगों को डूबने से बचाने का संकल्प ले लिया है।