प्रिय, मुझे अच्छा लगता इंतज़ार का मौसम, जब राहें सूनी होती हैं नज़रें नहीं और तय करना मुश्किल होता है कि हकीकत ज्यादा हसीन है या ख़्वाब देखना, कह देना आसान है या ज़ुबाँ को रोकना। क्योंकि जब भी तुम्हे देखा है अपने किसी ख्वाब को सच होते पाया हैं, जब भी ज़ुबाँ को रोका, नज़रों ने सब कुछ बयाँ कर दिया।
इंतज़ार की तपती भूमि पर तुम्हारी यादों की भीनी खुशबू से मेरे ख़्वाब महक उठे हैं, उसकी सौंधी-सी खुशबू को मैं अपनी साँसों में महसूस कर पा रही हूँ, तुम्हारी हर याद को चुनरिया में पिरोकर ओढ रखा हैं मैंने ताकि महसूस कर सकूँ तुम्हें करीब से, और ये इंतज़ार कभी ना खत्म होने वाली दास्ताँ बनकर जुडी रहे मेरी साँसों से।
मुझे आज भी याद है जाने से पहले तुम्हारा पलट कर देखना, उस नज़र को, उस कशिश को आँखों में समेट कर मैं इंतज़ार कर रही हूँ तुम्हारे लौटने का। मैं चाहूँ तो ये खत तुम तक पहुँचा सकती हूँ लेकिन नहीं क्योंकि उसी उलझन में हूँ कि कह देना आसान हैं या भावनाओ को मन में संजोकर रखना।
शायद इस बार मैं भी सहेज कर रखना चाहती हूँ तुम्हारी तरह हर उस एक पल को, हर उस नज़र को जो कभी तुम शब्दों में ना ढाल पाए और मैं इंतज़ार करती रही कि एक दिन तुम कहोगे ज़रूर। आज जब तुम पास नहीं हो तो महसूस कर पा रही हूँ कि कितनी कशिश होती हैं इस इंतज़ार के मौसम में जब राहें सूनी होती हैं, नज़रें नहीं और तय करना मुश्किल होता है कि हकीकत ज्यादा हसीन है या ख़्वाब देखना, कह देना आसान है या ज़ुबाँ को रोकना.