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Written By WD

योग्यता की पहचान

Nagarjun Kids Story | योग्यता की पहचान
राजकुमार जैन

नागार्जुन अपने जमाने के प्रख्यात रसायन शास्त्री थे। उन्होंने अपनी चिकित्सकीय ‍सूझबूझ से अनेक असाध्य रोगों की औषधियाँ तैयार की। वह निरंतर अपनी प्रयोगशाला में जुटे रहते और नित नई औषधियों की खोज करते।

नागार्जुन जब वृद्ध हो चले, तो उन्होंने एक बार राजा से कहा - 'राजन! प्रयोगशाला का काम बहुत बढ़ चला है। अपनी अवस्था को देखते हुए मैं भी अधिक काम करने में असमर्थ हूँ। इसलिए मुझे अपने काम के लिए एक सहायक की आवश्यकता है।

राजा ने ध्यान से नागार्जुन की बात सुनी और कुछ सोचकर कहा- 'कल मैं आपके पास दो कुशल और योग्य नवयुवकों को भेजूँगा। आप उनमें से किसी एक का चयन अपने सहायक के रूप में कर लीजिएगा।'

अगले दिन सवेरे दो नवयुवक नागार्जुन के पास पहुँचे। नागार्जुन ने उन्हें अपने पास बिठाया और उनसे उनकी योग्यताओं के बारे में पूछा। दोनों ही नवयुवक समान योग्यताएँ रखते थे और पढ़े-लिखे भी दोनों समान थे। अब नागार्जुन के सामने यह समस्या उठ खड़ी हुई कि वह उन दोनों में से किसे अपना सहायक चुनें?

आखिरकार बहुत सोच-विचार के बाद नागार्जुन ने उन दोनों को एक-एक पदार्थ दिया और उनसे कहा - 'यह क्या है, इस बारे में मैं तुम्हें कुछ नहीं बताऊँगा। तुम स्वयं इसकी पहचान करो और फिर इसका कोई एक रसायन अपनी मर्जी के अनुसार बनाकर लाओ।

इसके बाद ही मैं यह निर्णय करूँगा कि तुम दोनों में से किसे अपना सहायक बनाऊँ?' दोनों युवक पदार्थ लेकर उठ खड़े हुए। तब नागार्जुन ने कहा - 'तुम लोगों की मैं परसों प्रतीक्षा करूँगा।' वह दोनों युवक जैसे ही जाने को हुए। नागार्जुन ने फिर कहा, 'और सुनो, घर जाने के लिए तुम्हें पूरा राजमार्ग तय करना होगा।'

दोनों नवयुवक उनकी अजीब शर्त सुनकर हैरत में पड़ गए और सोचने लगे कि आचार्य उन्हें राजमार्ग पर से होकर ही जाने को क्यों कह रहे हैं? लेकिन आचार्य से उन्होंने इस बारे में कोई सवाल नहीं किया और वहाँ से चल दिए। तीसरे दिन सायं दोनों नवयुवक यथासमय नागार्जुन के पास पहुँचे। उनमें से एक नवयुवक काफी खुश दिखाई दे रहा था और दूसरा खामोश।

नागार्जुन ने पहले युवक से पूछा 'क्यों भाई! वह रसायन तैयार कर लिया?'
युवक ने तत्परता से प्रत्युत्तर दिया - 'जी हाँ! मैंने उस पदार्थ की पहचान कर रसायन तैयार कर लिया है।'

तब नागार्जुन ने तैयार रसायन की परख की और उसके संबंध में युवक से कुछ प्रश्न किए। युवक ने उनके सही-सही उत्तर दे दिए।

तब नागार्जुन ने दूसरे युवक से पूछा - 'तुम अपना रसायन क्यों नहीं लाए?'
युवक ने उत्तर दिया - 'आचार्य जी! मुझे बहुत दुख है कि मैं रसायन बनाकर नहीं ला सका। हालाँकि मैंने आपके दिए हुए पदार्थ को पहचान लिया था।'
'लेकिन क्यों?' नागार्जुन ने पूछा।

युवक ने उत्तर दिया - 'जी! मैं आपके आदेश के अनुसार राजमार्ग से होकर गुजर रहा था कि अचानक मैंने देखा कि एक पेड़ के नीचे एक वृद्ध और बीमार व्यक्ति पड़ा दर्द से कराह रहा है और पानी माँग रहा है। कोई उसे पानी तक देने के लिए तैयार नहीं था।

सब अपने-अपने रास्ते चले जा रहे थे। मुझसे उस वृद्ध की यह दशा देखी न गई और मैं उसे उठाकर अपने घर ले गया। वह अत्यधिक बीमार था। मेरा सारा समय उसकी चिकित्सा और सेवा सुश्रुषा में लग गया। अब वह स्वास्थ्य लाभ कर रहा है। इसीलिए मैं आपके द्वारा दिए गए पदार्थ का रसायन तैयार न कर पाया। कृपया मुझे क्षमा करें।'

इस पर नागार्जुन मुस्करा उठे और उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा - 'मैं तुम्हें अपना सहायक नियुक्त करता हूँ।

अगले दिन जब नागार्जुन राजा से मिले तो राजा ने आश्चर्य से पूछा - 'आचार्य जी! मैं अब तक नहीं समझ पा रहा हूँ कि आपने रसायन बनाकर लाने वाले युवक के स्थान पर उस युवक को क्यों अपना सहायक बनाना स्वीकार किया, जो रसायन बनाकर नहीं ला सका?'

तब नागार्जुन ने बताया - 'राजन! मैंने उचित ही किया है। जिस नवयुवक ने रसायन नहीं बनाया। उसने मानवता की सेवा की। दोनों नवयुवक एक ही रास्ते से गुजरे, लेकिन एक उस वृद्ध बीमार की सेवा के‍ लिए रुक गया और दूसरा उसे अनदेखा कर चला गया।

मुझे पहले ही ज्ञात था कि राजमार्ग में एक पेड़ के नीचे बीमार आदमी पड़ा है। स्वयं जाकर उसे अपने यहाँ लाने की सोच रहा था‍ कि संयोग से ये दोनों युवक आ पहुँचे। तब मैंने योग्यता की परख के विचार से उन्हें राजमार्ग से ही जाने का निर्देश दिया। रसायन तो बहुत लोग तैयार कर सकते हैं किंतु अपने स्वार्थ को भूलकर मानवता की सेवा करने वाले सेवाभावी बहुत कम हुआ करते हैं। मेरे जीवन का ध्येय ही मानवता की सेवा करना है। और मुझे ऐसे ही व्यक्ति की आवश्यकता थी, जो सच्चे मन से मानव सेवा कर सके।

मुझे प्रसन्नता है कि आप द्वारा भेजे गए नवयुवकों में से एक मानवता की सेवा के लिए तत्पर निकला। यही कारण है कि मैंने उसका चयन किया।' राजा नागार्जुन की यह अनुभव भरी व समझपूर्ण बात सुनकर उनके आगे श्रद्धा से नतमस्तक हो गया।