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Written By ND

जब मुनि‍या ने अपनी बात कही...

जब मुनि‍या ने अपनी बात कही... -
-टिल्लू चाचा

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रामपुर में मुनिया को कोई ना जाने ऐसा हो ही नहीं सकता था। मुनिया इतनी चुलबुली और बातूनी थी हर किसी से कुछ न कुछ बातें करती। गाँव के सारे लोग उसे और वह सभी को पहचानती थी। मुनिया के गाँव में एक ही स्कूल था और उस स्कूल में मुनिया हमेशा सबसे ज्यादा नंबर लाती थी। सभी मानते थे कि मुनिया बहुत तेज है वरना घर का काम करने के बाद पढ़ाई कहाँ हो पाती है?

मुनिया का बातूनी होना उसकी माँ को ठीक नहीं लगता था। वे हमेशा मुनिया से कहती कि-बेटा थोड़ा कम बात करनी चाहिए, लोग तेरे बारे में क्या सोचते होंगे? मुनिया कहती- मुझे क्या, जो सोचना हो वो सोचें! मुनिया की माँ कहती कि अगर ऐसे ही बड़बड़ी रहेगी तो कोई तूझे ब्याहने नहीं आएगा। मुनिया तुरंत जवाब देती तो मैं किसी गूँगे-बहरे से ब्याह कर लूँगी। माँ अब इसके आगे क्या कहती। मुनिया के पास हर बात का जवाब होता था।

बारिश के दिनों में मुनिया के स्कूल की अधिकतर छुट्टी हो जाया करती थी क्योंकि ज्यादा पानी गिरता तो स्कूल की छत टपकने लगती और बैठने की कोई जगह नहीं रहती। मुनिया को इस दिन लगता कि अगर उसके पास एक बहुत बड़ी छतरी होती तो वह उसे स्कूल के ऊपर तान देती और फिर सब बच्चे आराम से पढ़ाई करते, पर अफसोस कि गाँव तो क्या शहर में भी ऐसी छतरी नहीं मिलती थी।

बारिश के महीनों में तो स्कूल में कई दिनों तक पढ़ाई मारी जाती। फिर कुछ त्योहारों की छुट्टियाँ लग जाती और बच्चों को एक साथ ज्यादा-ज्यादा पढ़ाई करनी पड़ती। ऐसा होने से उन्हें बहुत ज्यादा पढ़ना पड़ता और बहुत थोड़ा याद रहता। मुनिया के पास यूँ तो बहुत सी बातों के हल थे पर इस समस्या का कोई हल उसे सूझता नहीं था। बारिश के दिनों में यही एक समस्या नहीं थी बल्कि गाँव के पास से होकर बहने वाली नदी में बाढ़ आ जाना इससे भी बड़ी समस्या थी। बाढ़ आने पर गाँव के लोग शहर नहीं जा पाते थे। जरूरी काम रह जाते थे। शहर से मोटर गाँव नहीं आ पाती थी और स्कूल के मास्टरजी भी नहीं आ पाते। रास्ता चालू होने तक स्कूल फिर से बंद। पर बाढ़ कभी-कभार आती और छत रोज टपकती थी तो ज्यादा बड़ी समस्या तो छत का टपकना ही था।

एक दिन मुनिया के गाँव में बड़ी अफरा-तफरी थी। मुनिया को लगा कि पता नहीं क्या होने जा रहा है। उसने जाकर सरपंचजी से पूछा। सरपंचजी ने बताया कि कुछ दिनों बाद गाँव में मंत्री जी आने वाले हैं और वे गाँववासियों से मिलेंगे। वे हमारी समस्या भी सुनेंगे और उन्हें दूर करने की कोशिश भी करेंगे।

मुनिया ने बि‍ना घबराए बता दि‍या कि‍ गाँव के पास वाली नदी के कारण कई दि‍नो तक मोटर नहीं आती। नदी पर पुल बनना चाहि‍ए। हमारी स्‍कूल की छत बारि‍श में टपकती है और स्‍कूल बंद रहता है। हम बच्‍चों की पढ़ाई मारी जाती है।
सरपंचजी ने मुनिया से कहा कि मंत्रीजी गाँव में अच्छी फसल पैदा करने वाले किसी किसान भाई को पुरस्कार भी देंगे। मुनिया बड़ी खुश हुई कि यह तो बहुत ही अच्छी बात है। सरपंचजी के यहाँ से वह चली तो उसने देखा कि गाँव में चारों तरफ अच्छे से साफ-सफाई हो रही है और तैयारियाँ चल रही हैं। मुनिया को लगा कि मंत्रीजी के आने से गाँव का कुछ फायदा तो हुआ। उसने भी स्कूल में जाकर अपने सभी दोस्तों को यह बात बताई कि गाँव में मंत्रीजी आने वाले हैं।

मुनिया ने मास्टरजी से पूछा कि क्यों न हम भी अपने स्कूल की ओर से मंत्रीजी से मिलने जाएँ और उन्हें अपने स्कूल की समस्या बताएँ। मास्टरजी ने कहा मुनिया तुम्हारी बात तो एकदम ठीक है, पर मंत्रीजी बड़े आदमी हैं। उनके पास सभी की बातें सुनने का समय नहीं होता है। और फिर स्कूल की समस्या हमने जिले के अधिकारियों को कई बार बताई है। मुनिया ने कहा- मास्टर जी, हम मंत्री जी को यह भी कह देंगे कि स्कूल की समस्या सभी को बताने के बाद भी अभी तक इस ओर किसी ने ध्यान नहीं दिया है। वे जरूर हमारी छत का टपकना बंद करवाएँगे। तो मास्टरजी ने एक ज्ञापन लिखा। तय यह हुआ कि मुनिया और मास्टरजी मिलकर मंत्रीजी को ज्ञापन सौपेंगे। इसके बाद स्कूल की छुट्टी हो गई और सभी बच्चे घर आ गए।

मुनिया ने घर आकर यह बात माँ को बताई कि अब उसके स्कूल की छत नहीं टपकेगी क्योंकि वे अपनी समस्या मंत्री जो बताएँगे और फिर मंत्रीजी हमारी छत ठीक करवा देंगे। माँ ने कहा- जैसे तूने सोचा और छत ठीक हो गई। मंत्रीजी से मिलना कितना कठिन है मालूम है। वे गाँव आएँगे तो कुछ ही लोग उनसे मिल पाएँगे। मुनिया उदास हो गई। उसने सोचा तो क्या स्कूल की छत कभी ठीक ही नहीं हो पाएगी। फिर पता नहीं कब सोचते-सोचते उसे नींद आ गई।

इसी बीच दो-तीन दिन निकले और वह दिन आ पहुँचा जब मंत्रीजी गाँव का दौरा करने आने वाले थे। गाँव में एक बड़ा सा मंच बना था जिस पर चढ़कर मंत्रीजी को भाषण देना था और कुछेक पुरस्कार बाँटकर उन्हें जल्दी दूसरे गाँव निकलना था। सारे बच्चे उस दिन धुली हुई यूनिफॉर्म पहनकर आए थे। मास्टरजी भी सफेद कुर्ता-पाजामा पहनकर आए थे।

आखिर उन्हें आज मंत्रीजी से मिलना था। मंत्रीजी सुबह ग्यारह बजे गाँव आने वाले थे और जैसे ही ग्यारह बजे तो लाल बत्ती वाली सफेद एम्बेसेडर कार गाँव में पहुँची। उसके आगे-पीछे चार-पाँच गाड़ियाँ और भी थीं। मुनिया बहुत खुश हुई क्योंकि मंत्रीजी ठीक समय पर गाँव आ गए थे। थोड़ी ही देर में भीड़ लग गई। आसपास के गाँवों के लोग भी आज मुनिया के गाँव में मौजूद थे। भीड़ बहुत हो गई थी। मंत्रीजी के साथ उनके सुरक्षाकर्मी भी थे जो बराबर इस बात का ध्यान रख रहे थे कि मंत्रीजी सीधे मंच तक जा सकें। मंत्रीजी मंच पर पहुँच गए। मंच पर सरपंचजी और गाँव के सभी प्रमुख उपस्थित थे। मंत्रीजी का स्वागत हुआ।

मास्टरजी ने मुनिया से कहा कि अब तो मंत्रीजी तक पहुँचना मुश्किल है। हम स्कूल का ज्ञापन उन्हें नहीं दे पाएँगे। मुनिया को सुनकर धक्का लगा। अगर सरपंचजी उसकी तरफ देखते तो वह उन्हें इशारे से बता देती पर अब क्या हो सकता था। मास्टरजी ने कहा कि हमें अपना ज्ञापन सरपंचजी को ही दे देना था। मुनिया ने कहा पर हमारी बात मंत्रीजी को मालूम कैसे होती? थोड़ी देर तक मंच पर मंत्रीजी का स्‍वागत हुआ।

सरपंच जी ने बताया कि‍ उनके गाँव में सारी चीजें ठीक चल रहीं हैं और सारे काम समय पर पूरे हो रहे हैं। मुनि‍या ने यह सुना तो उसे हैरानी हुई कि‍ मंत्रीजी को गाँव की समस्‍या के बारे में तो कुछ भी नहीं बताया जा रहा। इसके बाद मंत्रीजी रामनारायण को श्रेष्‍ठ कि‍सान के तौर पर पुरस्‍कृत कि‍या। फि‍र उन्‍होंने कुछ घोषणाएँ की और बस उनके जाने का समय हो गया। वे मंच से नीचे उतरने लगे।

वे जब जाने लगे तो मुनि‍या ने ऊँची आवाज में कहा कि‍ मंत्रीजी हमारी समस्‍या तो छूट ही गई। मंत्रीजी ने पलटकर देखा तो एक छोटी सी बच्‍ची खड़ी थी। मंत्रीजी ने तुरंत उसे पास बुलाया और पूछा - क्‍या समस्‍या है तुम्‍हारी? मुनिया ने बि‍ना घबराए बता दि‍या कि‍ गाँव के पास वाली नदी के कारण कई दि‍नो तक मोटर नहीं आती। नदी पर पुल बनना चाहि‍ए। हमारी स्‍कूल की छत बारि‍श में टपकती है और स्‍कूल बंद रहता है। हम बच्‍चों की पढ़ाई मारी जाती है। मुनि‍या ने कहा कि‍ हमने जि‍ले के अधि‍कारि‍यों से शि‍काश्‍त की परंतु कुछ नहीं हुआ। मंत्रीजी अचरज से देखते रहे एक छोटी सी बच्‍ची कि‍तने साहस से अपनी बात रख रही है। मुनि‍या ने मंत्रीजी से कहा कि‍ हमारे गाँव की बि‍जली भी बहुत जाती है और इससे भी पढ़ाई में बहुत दि‍क्‍कत होती है। मंत्रीजी के साथ खड़े बाबू ने सारी बातें नोट कर ली। मुनि‍या बोली कि‍ हम अपनी शि‍कायतें लि‍खकर भी लाए हैं। मुनि‍या ने मास्‍टरजी को इशारा करके बुलाया। उन्‍होंने मंत्रीजी को ज्ञापन दि‍या। मंत्रीजी ने पूछा 'तुम्‍हारा नाम क्‍या है बेटी?' मुनि‍या ने जवाब दि‍या 'मुनि‍या'।

मंत्रीजी ने कहा कि‍ अगले महीने तक तुम्‍हारी दोनों समस्‍याओं का हल हो जाएगा। मंत्रीजी ने अपनी जेब से पेन नि‍काला और मुनि‍या को देते हुए कहा ये मेरी तरु से तुम्‍हारे लि‍ए इनाम। अपनी समस्‍या सच-सच बताने के लि‍ए और फि‍र मंत्रीजी चले गए। इसके बाद तो पूरे गाँव में मुनि‍या के ही चर्चे थे। मुनि‍या की माँ जब यह बात पता चली तो उन्‍हें अपनी बेटी पर खूब गर्व हुआ। अगले महीने तक स्‍कूल की नई छत बन गई और मुनि‍या की समस्‍या दूर हो गई। सुना है अब गाँव की नदी पर पुल बनने का काम भी शुरू हो रहा है।