गुरुवार, 18 अप्रैल 2024
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Written By WD

पत्थर की बावड़ी

एक पत्थर की बावड़ी (दक्षिण-पूर्व समूह)

पत्थर की बावड़ी -
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पार्श्वनाथ क्षेत्र को एक पत्थर की बावड़ी क्षेत्र (दक्षिण-पूर्व समूह) कहा जाता है। यह स्थान फूलबाग गेट के पास है। सड़क से किले की दीवार तक, जहाँ यह स्थान है, 2 फर्लांग से अधिक चढ़ाई है। चढ़ाई में थकान आ जाती है। मार्ग पक्का है। किले की प्राचीर से बाहरी हिस्से में एक कोने में पत्थर में खुदी हुई प्राकृतिक बावड़ी है, जिसमें प्रति समय शीतल एवं मीठा पानी निरंतर अज्ञात स्रोत से आता रहता है।

यह लगभग 20 फुट लंबी और इतनी ही गहरी है। इस बावड़ी के बाईं-दाईं दिशा में गुफाएँ हैं। बाईं दिशा वाली गुफाएँ पहुँच के बाहर होने से उनके बारे में कुछ ज्ञात नहीं हो सका। दाहिनी दिशा में दुर्ग के बाहर पहाड़ी की चट्टानों में विशाल अवगाइना वाली पद्मासन एवं खड़्‌गासन तीर्थंकर प्रतिमाएँ गुफा के अंदर पहाड़ में बनाई गई हैं। मूर्ति कला की दृष्टि से यह समुन्नत एवं महत्वपूर्ण है। लगभग 2 फर्लांग के बीच में यह क्षेत्रफैला हुआ है। यहाँ की मूर्तियाँ कलापूर्ण, सुघड़ एवं सुंदर हैं। कुशल कारीगरों द्वारा निर्मित की गई हैं। मूर्तियों का सौष्ठव, अंग विन्यास और भाव व्यंजना कलाकारों की मूक निपुणता के साक्षी हैं।

मूर्तियों के अभिषेक के लिए पत्थर काटकर सीढ़ी बनाई गई है। 9 मूर्तियों के आगे ऊँची दीवार उठाकर और मूर्तियों के ऊपर शिखर बनाकर मंदिर का स्वरूप दिया गया है। मूर्ति के पीछे भांडल, सिर के ऊपर चन्दोवा छत में और हाथों में कमल बने हैं। प्रत्येक मूर्ति के दोनों ओर गजलक्ष्मी सूँड में कलश लिए अभिषेक करते दिखाई पड़ते हैं।

गुफा नं. 1- भगवान पार्श्वनाथ की पद्मासन मूर्ति 9 फुट फण सहित व चौड़ाई साढ़े सात फुट, फण की ऊँचाई सवा दो फुट, फण के आजू-बाजू हाथी हैं।
दशा- चेहरा, हाथ विकृत, खंडित दशा
पाद पीठ पर 5 पंक्ति में प्रतिमा की पूरी चौड़ाई में मूर्ति लेख

प्रथम पंक्ति- सिद्धेभ्यः श्री श्रीमतरंग श्री स्याद्वाद मोघ लाछनम्‌। जीया त्रैलोक्य नाथ शासनम्‌ जिन शासनम्‌ स्वस्ति सम्वत्‌ 1525 वर्षे चैत्र सुदी 15 मूलसंघे सरस्वती गच्छे बलाकार गणे श्री कुन्दकुन्दाचार्यान्वये आम्नाय भट्टारक श्री प्रभाचंद्र देवा ततो पट्टे भट्टारक श्री पद्मनंदी देवा भट्टारक श्रुतचंद देवा।

द्वितीय पंक्ति- तत्पट्टे भट्टारक श्री जिनचंद्र यतीश्वरा तत्पट्टे भट्टारक श्री सिंहकीर्ति यतीश्वरा तेषाम्‌ उपदेशात्‌ श्री गोपाचल महादुर्गे श्री तोमरान्वये महाराजाधिराज श्री कीर्तिसिंह विजयराजे। ...सिद्ध प्रतिष्ठा श्री इक्ष्वाकु वंशोन्दवा गोलारोड ति मद्ये संघातिपति पम ॥श्री॥

तृतीय पंक्ति- ...सुहाग श्री तत्पुत्रा माणिक सं. अश्वपति सं. कुषराज सं. जो जि॥ सं. माणिक भार्या लखण श्री तत्पुत्रा सं. वन हरसिंघा। पडरू। कुमुदचंद्र भार्या कुला द्वितीय विजय श्री हरिसिंघ भार्या रामश्री द्विः जयति श्री तृ शिव श्री॥ पडरू भार्या भागीरथी। कुमुदचन्द्र भार्या शोनन श्री पुत्र॥

चौथी पंक्ति- अश्वपति... भार्या श्री... पुत्र माधव भार्या लाड़म श्री पुत्र उद्धरण भार्या माणिक्य श्री द्वितीय... पुत्र देवचंद्र आर्या खिमश्री॥ कुशराज भार्या लोहव द्वितीय भार्या वीरा पुत्र बुद्धसेन पुत्री हरमति जो जि समायहि श्री पुत्र... कुंवराय॥ मण्डे भार्या रतन श्री॥ सजन श्री मंगो... ये तषाम मध्ये संघादिपतियम्‌।

पाँचवीं पंक्ति- भूपतयः बंधु निज पुत्र पौत्रो श्री पार्श्वनाथ तीर्थश्वरम्‌ नित्यं पूज्याम्‌ प्रणमति श्री शांति रस्तु शिवम्‌ सुख नित्य आरोग्य भवतु... सिद्धरस्तु शत्रु निवारन कुल गोत्र वंशादष्टु इति श्री राजा श्रावक प्रजासुखी नो भवन्तु धर्मोवृद्धिताम्‌ श्री॥

इस गुफा में चार शिलालेख और हैं जो पढ़ने में नहीं आते। इस गुफा में चार मूर्तियाँ और हैं- 1. चंद्रप्रभु, 2. नेमिनाथ, 3. शांतिनाथ, 4. मूर्ति का चिन्ह समझ में नहीं आता। इसके अलावा दो मूर्तियाँ छोटी-छोटी और हैं। सभी मूर्तियाँ खंडित दशा में हैं।

इस गुफा के आगे 20 से 30 फुट ऊँची खड़्‌गासन मूर्तियाँ हैं। पाद पीठ पर बने लांछनों के अनुसार ये जिन तीर्थंकरों की हैं।

गुफा नं. 2- मूलनायक शांतिनाथ। इसके अलावा 4 प्रतिमाएँ और हैं।
गुफा नं. 3- मूलनायक श्री शांतिनाथ। इसमें 5 खड़्‌गासन व 1 पद्मासन मूर्ति और है।
गुफा नं. 7 व 8 के बीच में शिलालेख हैं- स्वस्ति श्री सर्वज्ञाय॥ सम्वत्‌ 1525 वर्षे चैत्र सुदी 15 पूर्णिमायाम गुरौ श्री गोपाचल दुर्गे तोमर वंशानवय महाराजाधिराज डूगरेन्द्र देवास्त राज्येन जोगण... माणिक महाराजे रयद्धू।
गुफा नं. 11 में पद्मासन आदिनाथ।
गुफा नं. 12 में आदिनाथ प्रतिमा पद्मासन।
इसमें आदिनाथ-लेख निम्न प्रकार है-

श्री जिनाय नमः सम्वत्‌ 1525 वर्षे चैत्र सुदी 15 गुरुवासरे श्री गोपाचरन दुर्गे तोमर वंशादि महाराजाधिराज श्री डूगरेन्द्र देवस्त पदौ गजवन्द्य एवं नृप चक्र मौर्य माण्डितम्‌ वितपाद पदमोक्ष श्री मंडलेश्वर पाप विनेश्वर कालिकाल चक्रवर्ती यतिपति श्री कीर्तिसिंह देवराज्य प्रवर्त्तमाने श्री काष्ठासंघे माथुराणवयेपुष्करगणे भट्टारक श्री देवकीर्ति देवस्तत्पहा भट्टारक श्री कमलकीर्ति देवास्तत्व पट्टे वाल ब्रह्मचारी व्रत चारित्रारा... स्मरणार्थ प्रभाकरा भट्टारक श्री शुभचन्द्रदेवा प्रतिष्ठाचार्य पंडित रयद्धू कृतपाद सेवा तदाम्नाय अगोत कान्वेय गर्ग गोत्रे साधु मनः तस्य पुत्र साधु पण्डितस्य पुत्र साधु पालात तत्पुत्र साधु कोला तस्य भार्या साधवी रूपा तत्पुत्रौस्त पेमराज सं. हेमराज नामानौ।

सं.पेमराज भार्या जौडा ही तत्‌ पुत्र साः मदना हेमराज भार्या धनराज श्री द्वितीया मदन श्री तत्पुत्र घुमरू तस्य भार्ये द्वौ प्रथमा बाला श्री द्वितीय लडवर पुत्र राजचन्द संतोष भार्या तत्‌पाल श्री। तृतीय पुत्र कुलभार धुरन्दर संघाधिपति नानू तस्य भार्या 3 द्योथर श्री द्वि भाव श्री तृ. लाडश्री एतेषाम्‌ मध्येसंसार शरीर भोग विरक्तेन परोपकार करापेतं तस्य प्रेरणा जिन प्रतिष्ठाकारणार जिन तीर्थेश योगेश जिन प्रभानाणं भावनी गभार धुरे धेरणाम्‌ चतुर्विधिदाम श्री वणसुर तरुणा त्रिकाल प्रणम दिगम्बरौ॥ गुरुणाम आसन्न भव्वेन संघाधिपति श्री हेमराजेन श्री युगाधिनाथ जिनेश्वरन्य महा भणायेमा प्रतिमा निर्माण पुनः प्रतिष्ठा त्रिभुज भक्ति प्रणत सिरमा नित्य प्रणमति क्षेमम्‌ सर्व प्रजानाम्‌ प्रभवतु बलवान धार्म को भूमिपाला काले कालेन सम्यक वर्षनु।

गुफा नं. 13 में एक खड़्‌गासन एवं एक पद्मासन प्रतिमा।
गुफा नं. 14 में दो खड़्‌गासन प्रतिमा।
गुफा नं. 15 में एक खड़्‌गासन प्रतिमा।
गुफा नं. 16 में एक खड़्‌गासन उसके बाद पद्मासन।
गुफा नं. 17 में एक खड़्‌गासन।
गुफा नं. 18 में एक पद्मासन। इसमें श्री नेमिनाथ भगवान हैं।

इसमें लेख है- कूला पुत्र हंसराज श्री पद... माणिक श्रेण कर्म क्षयात्‌ पथ
इन मूर्तियों के आगे दीवार में द्वार और ऊपर शिखर बने हैं। ये शिखर मंदिर जैसे प्रतीत होते हैं।
इसके आगे पुष्पदन्त, नेमिनाथ और ऋषभदेव की खड़्‌गासन तथा पद्मप्रभु की पद्मासन मूर्तियाँ हैं। इनके पश्चात कई छोटी-छोटी मूर्तियाँ हैं। एक मूर्ति के आगे दोनों ओर मान स्तंभ बने हैं। आगे एक गुफा में छोटी-बड़ी 125 मूर्तियाँ हैं। ये दीवारों में उकेरी गई हैं। इनके पश्चात तीन खड़्‌गासन मूर्तियाँ हैं। अंत में दो गुफाएँ हैं, जिनमें कुछ मूर्तियाँ हैं।

इस अन्त की गुफा नं. 26 में आदिनाथ की एक खड़्‌गासन मूर्ति है, जो 35 फुट ऊँची और 10 फुट चौड़ी है। ये मूर्ति बहुत सुंदर है। शिल्प उच्च कोटि का है। इसका चेहरा खंडित है।

दक्षिण-पूर्व (एक पत्थर की बावड़ी) की तरफ दो प्रतिमाएँ इस विनाश लीला से बच सकीं। इसमें एक प्रतिमा विश्व प्रसिद्ध पार्श्वनाथ की और दूसरी प्रतिमा बावड़ी के बगल में ऊपर चट्टान में, यह महावीर भगवान की मूर्ति है। पार्श्वनाथ की मूर्ति के नजदीक।

इन मूर्तियों के निर्माणकर्ताओं ने अतुल धन व्यय करके अक्षय पुण्य और कीर्ति का संचय किया, उन्हें बाबर के सैनिकों ने हथौड़े से निर्र्मम प्रहार करके अनेक मूर्तियों की मुखाकृति नष्ट कर दी, अनेक के हाथ-पैर खंडित कर दिए गए। सभी मूर्तियाँ क्षत-विक्षत कर दी गईं। धर्मोन्माद में पुरातत्व, इतिहास, कला की अमूल्य सामग्री नष्ट कर दी गई।

मोहन जोदड़ो एवं हड़प्पा की खुदाई से तो प्राचीन इतिहास, पुरातत्व, कला की सामग्री मिल गई है, परन्तु पुरातत्व विभाग ने ऐसा आलस्य व प्रमाद एवं अनदेखा कर दिया है कि माध्यमिक काल की कला व संस्कृति को हमेशा के लिए नष्ट कर दे।

भारत का दूसरी-तीसरी शताब्दी का इतिहास अंधकार में है और पुरातत्व विभाग माध्यमिक काल की कला संस्कृति के इतिहास को नष्ट कर रहा है। न तो स्वयं सुरक्षा कर पा रहा है और न सुरक्षा किसी को करने ही देता है। यह पुरातत्व विभाग की नीति समझ के बाहर है।