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Written By WD

मैं संन्यासी नहीं - महात्मा गाँधी

Mahatma Gandhi | मैं संन्यासी नहीं - महात्मा गाँधी
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मुझे संन्यासी कहना गलत है। मेरा जीवन जिन आदर्शों से संचालित है, वे आम आदमियों द्वारा अपनाए जा सकते हैं। मैंने उन्हें धीरे-धीरे विकसित किया है। हर कदम अच्छी तरह सोच-विचार कर और पूरी सावधानी बरतते हुए उठाया गया है।

मेरा इंद्रिय-निग्रह और अहिंसा, दोनों मेरे व्यक्तिगत अनुभव की उपज हैं, जनसेवा के हित में इन्हें अपनाना आवश्यक था। दक्षिण अफ्रीका में गृहस्थ, वकील, समाज सुधारक या राजनीतिज्ञ के रूप में जो अलग-थलग जीवन मुझे बिताना पड़ा, उसमें अपने कर्तव्यों के सम्यक निर्वाह के लिए यह आवश्यक था कि मैं अपने जीवन के यौन पक्ष पर कठोर नियंत्रण रखूँ, और मानवीय संबंधों में, वे चाहे अपने देशवासियों के साथ हों अथवा यूरोपियनों के साथ, अहिंसा और सत्य का दृढ़ता से पालन करूँ।
हरि, 3-10-1936, पृ. 268

अनवरत काम के बीच मेरा जीवन आनंद से परिपूर्ण रहता है। मेरा कल कैसा होगा, इसकी कोई चिंता न करने के कारण मैं स्वयं को पक्षी के समान मुक्त अनुभव करता हूँ.... मैं भौतिक शरीर की जरूरतों के खिलाफ निरंतर ईमानदारी के साथ संघर्षरत हूँ, यही विचार मुझे जीवित रखता है।
यंग, 1-10-1925, पृ. 338

बिना आस्था के काम करना ऐसा ही है जैसा कि बिना पेंदे के गर्त का पेंदा ढूँढना।
हरि, 3-10-1936

अहंकार का त्याग
मैं जानता हूँ कि मुझे अभी बड़ा मुश्किल रास्ता तय करना है। मुझे अपनी हस्ती को बिलकुल मिटा देना होगा। जब तक मनुष्य अपने आपको स्वेच्छा से अपने सहचरों में सबसे अंतिम स्थान पर खड़ा न कर दे तब तक उसकी मुक्ति संभव नहीं। अहिंसा विनम्रता की चरम सीमा है।
ए, पृ. 371
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यदि हम धर्म, राजनीति, अर्थशात्र आदि से 'मैं' और 'मेरा' निकाल सकें तो हम शीघ्र ही स्वतंत्र हो जाएँगे, और पृथ्वी पर स्वर्ग उतार सकेंगे।
यंग, 3-9-1926, पृ. 336
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समुद्र की एक बूँद भी समुद्र की विशालता का एक हिस्सा होती है, यद्यपि उसे इसका भान नहीं होता। लेकिन समुद्र से छिटककर गिरते ही वह सूख जाती है। हम कोई अतिशयोक्ति नहीं करते जब यह कहते हैं कि जीवन मात्र एक बुलबुला है।

सत्यशोधक के लिए अहंकारी होना संभव नहीं है। जो दूसरों के लिए अपने जीवन का बलिदान करने को तत्पर हो, उसके पास इस संसार में अपने लिए स्थान सुरक्षित करने का समय कहाँ?
यंग, 16-10-1930
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व्यक्ति की क्षमता की सीमाएँ हैं, और जैसे ही वह यह समझने लगता है कि वह सब कुछ करने में समर्थ है, ईश्वर उसके गर्व को चूर कर देता है। जहाँ तक मेरा प्रश्न है, मुझे स्वभाव में इतनी विनम्रता मिली है कि मैं बच्चों और अनुभवहीनों से भी मदद लेने के लिए तैयारहतहूँ।

यंग, 12-3-1931, पृ. 32
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मेरे छत्यों का निर्णय मेरा भाग्करतहैमैकभउन्हें खोजने नहीं जाता। वअपने आप मेरे पास आ जाते हैं। मेरे संपूर्ण जीवन का-दक्षिण अफ्रीका में औभारलौटकर आने के बाद से अब तक क्रम यही रहा है।
यंग, 7-5-1925, पृ. 163