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Written By ND

बचपन में सारे नाटक करो-नंदिता

जन्मदिन : 7 नवंबर

Nandita das, kids story | बचपन में सारे नाटक करो-नंदिता
ND
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दोस्तो, मेरा जन्म दिल्ली में हुआ। बचपन भी वहीं बीता। मेरे बाबा चित्रकार हैं। मम्मी बहुत अच्छी लेखिका हैं। इन दोनों से बचपन से ही मुझे अच्छी चीजें सीखने को मिली। बाबा को देखकर बचपन में मैं भी पेंटिंग करना चाहती थी। पर यह रास्ता नहीं पकड़ सकी।

पेंटिंग न सीखने का मुझे आज भी थोड़ा अफसोस जरूर है। आप भी अपने स्कूल के दिनों में जो चीजें सीखना चाहते हो उन्हें सीख लो वरना बड़े हो जाने पर इन सभी चीजों को मिस करोगे। बचपन में माँ और बाबा ने मुझ पर कभी किसी तरह की पाबंदी नहीं लगाई। स्कूल के शुरुआती दिनों में माँ-बाबा कभी मुझे ज्यादा देर पढ़ने के लिए नहीं कहते थे पर वे यह जरूर कहते थे कि जो भी करना बस पूरी रचि के साथ करना।

मैं दूसरे कामों के साथ पढ़ाई पूरी रुचि के साथ करती थी और इसीलिए स्कूल से लेकर कॉलेज तक मैं टॉप आती रही। पढ़ाई को बोझ मानकर नहीं बल्कि रुचि के साथ किया जाए तो ज्यादा अच्‍छा स्कोर किया जा सकता है। स्कूल में मुझे दोस्त भी बहुत मिले। मेरे बहुत सारे दोस्त हैं। सभी अलग-अलग तरह का काम करते हैं और हम सभी को एक-दूसरे के साथ बातें करना अच्छा लगता है। स्कूल के दोस्त बड़े हो जाने पर भी एक-दूसरे से जुड़े हैं।

दोस्तो, मुझे आप जैसे साथियों के साथ समय बिताना और बातचीत करना बहुत अच्छा लगता है। मैंने कुछ समय बच्चों को पढ़ाने का काम भी किया है। शायद इसी वजह से मुझे 'चिल्ड्रंस फिल्म सोसायटी' का अध्यक्ष बनाया गया है। बच्चों से मुझे एक शिकायत यह भी है कि कई बार मैं बहुत छोटे बच्चों को भी बड़ी-बड़ी बातें करता पाती हूँ। जैसे एक 7वीं का बच्चा सोचता है कि उसे एमबीए करना है। एमबीए में क्या है वह यह नहीं जानता है। चूँकि दूसरे कर रहे हैं इसलिए आगे जाकर वह भी एमबीए करना चाहता है। इस तरह सोचने के बजाय आप सभी दोस्तों को अपनी रुचि के हिसाब से सोचना चाहिए।

अगर आपकी रुचि संगीत में है तो उसे अच्छे से सीखो। अगर डांस करना अच्‍छा लगता है तो वह करो। सोचो, जिसे गणित नहीं आता उसे बैंक में कैशियर बना दें तो क्या होगा। कबाड़ा होगा ना? तो फिर। इसलिए कह रही हूँ रुचि के अनुसार काम चुनना ज्यादा जरूरी है।

जब मैं तुम्हारी तरह स्कूल में थी तो छुट्‍टियों में एक बार नाना के यहाँ तो एक बार दादी के यहाँ रहती थी। एक जगह बॉम्बे थी तो दूसरी उड़ीसा में एक छोटा सा शहर। इन दोनों ही जगहों पर बीते बचपन के दिनों की खूब यादें मेरे पास हैं। मैंने गाना, फिल्म बनाना, खाना, नाटक और गार्डनिंग जैसे कामों में रुचि ली। ‍मैं सिर्फ स्कूल की किताबों को रटती नहीं क्योंकि अगर ऐसा करती तो दूसरी चीजें छूट जाती। फिर मैं अच्छी फिल्म नहीं देख पाती, दूसरी किताबें नहीं पढ़ पाती, घूमने के लिए कहीं नहीं जा पाती।

आजकल बच्चे डरते हैं कि अगर उन्होंने पढ़ाई में ज्यादा ध्यान नहीं दिया तो वे फेल हो जाएँगे। पर आप सभी एक कक्षा से दूसरी कक्षा में चले जाते हो पर क्या किताबों की बातों के अलावा दूसरी बातें जान पाते हो? किताबों के बाहर जो दुनिया है वह बहुत सुंदर है। असल दुनिया तो वही है।

एक और बात अपने आप को कभी कमजोर या कमतर नहीं समझना चाहिए। मेरा रंग साँवला है पर इस बात को लेकर मुझे कभी कॉम्प्लेक्स नहीं रहा। मेरे माता-पिता ने भी कभी नहीं चाहा कि उनकी बेटी गोरी हो या इसलिए खूब फेयर एंड लवली लगाए। आप जैसे भी दिखते हैं उस पर शर्मिंदा नहीं होना चाहिए। मैंने देखा है बच्चे किसी को देखकर उसके जैसा बनना चाहते हैं। पर हर आदमी अपने आप में अलग है। सोचो, दुनिया में सारी लड़कियाँ ऐश्वर्या राय जैसी दिखती तो क्या होता? दुनिया में एक ऐश्वर्या राय होना चाहिए, एक बिपाशा बसु होना चाहिए। एक मेधा पाटकर होना चाहिए और फिर कोई नंदिता दास भी होना चाहिए। इस तरह ही तो दुनिया में विविधता आएगी। वरना तो सबकुछ एक जैसा हो जाएगा। अपने भीतर विविध रंग खिलें इसके लिए आपकी कोशिश होती रहनी चाहिए।

आपकी दोस्त
नंदिता दास
जन्मदिन : 7 नवंबर