- लाइफ स्टाइल
» - साहित्य
» - काव्य-संसार
फिर भी मैं गुनहगार हुआ
योगेन्द्र दत्त शर्मा ये हादसा भरी महफ़िल में बार-बार हुआ,तलाश थी हमें जिसकी, वही फ़रार हुआ।ये दौर क्या है, ये कैसा अजीब मौसम है,शहीद मैं हुआ, पर किसको ऐतबार हुआ।मेरे शहर में ये कैसी हवा चली यारो,मैं क़त्ल भी हुआ, फिर भी मैं गुनहगार हुआ।मैं फूल बनके चमन में महक लुटाता रहा,मेरा वजूद मगर काँटों में शुमार हुआ।तमाम उम्र भटकती रही ख़लाओं में,मेरी सदा का, भला किसको इंतज़ार हुआ। मेरे बनाए गए रास्ते थे, पर उनसेमेरा गुज़रना रक़ीबो को नागवार हुआ।जो ख़ुशबुओं का गला घोटने में माहिर था,वो रातों-रात ही ख़ुशबू का इश्तहार हुआ।मुझे मिटाके, चला है सँवारने सब्ज़ा,सितमज़रीफ़ बड़ा मौसमे-बहार हुआ।उसी ने मुझको डसा साँप की तरह आख़िरकभी जो शौक़ से मेरे गले का हार हुआ।साभार : समकालीन साहित्य समाचार