प्यार की घनी छाँव हैं ये बेटियाँ
- उर्मि कृष्ण
प्यार की घनी छाँव हैं ये बेटियाँभर देती जिंदगी के अभाव ये बेटियाँबापू की आन मेंपति की शान मेंचाचा, ताऊ और जेठ, देवरके भार मेंमन के गुबार को, सद्भावना के नीचेदफना रही हैं ये बेटियाँकुल की लाज मेंसपूतों के निर्माण में
अपने अरमान कोमौन मेंपी रही हैं ये बेटियाँकला की आड़ मेंसौंदर्य के गुमान मेंरंगमंच हो या टीवी बेटी हो या बीवीअखबार हो या पत्रिकाउघाड़ी जा रही हैं ये बेटियाँआग की आँच परचौपड़ की बिसात परसीता सावित्री के नाम परहर युग में दाँव पर लगी हैं ये बेटियाँ
तुम कुछ भी कहोकुछ भी करोहर युग में मिटती आई है बेटियाँघर को सँवारतीजग को सुधारतीकभी न हारती नया जन्म फिर फिरलेती हैं बेटियाँनया जन्म फिर फिरदेती हैं बेटियाँ