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Written By WD

तुम्हारी हँसी की कोर में

poem | तुम्हारी हँसी की कोर में
जितेन्द्र श्रीवास्तव
ND
रुको तो सही
क्षण भर अभी
महसूस तो लूँ जरा
अनार के फूलों सी
यह ललछौंह संजीवनी हँसी

कि तुमको मालूम नहीं शायद
कि मैं बचा हूँ जितना भी अभी तक
इसी हँसी की कोर में ठहरा हुआ सा
कि पत्ता हो कोई ज्यों कहीं अटका हुआ-सा
कि अब गिरा कि तब गिरा
कि गिरना चाहता नहीं मैं
तुम्हारे इस अधर से

रुको तो सही
ओ प्राण मेरी!
कि छू लूँ जरा
अपनी ही धड़कन को।