तुम कहीं नहीं जा सकते
-अशोक वाजपेयी
आकाश कैसे भागेगा ब्रह्मांड से?कहाँ जाएगी पृथ्वी अपनी कक्षा से?नक्षत्र कहाँ दीप्त होंगे सौरमंडल छोड़कर?फूल हरी पत्तियों और झूमती डालों पर नहीं तो कहाँ फूलेंगे?जल कहाँ जाएगानदी से, सागर से,मेघ से, प्यास से दूर?तुम कहीं नहीं जा सकते अपनी त्वचा और अस्थियों से,अपनी भाषा से, अपने प्रेम से।