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परवाज़ एक मार्मिक उपन्यास

परवाज़ एक मार्मिक उपन्यास - परवाज़ एक मार्मिक उपन्यास
अरुंधति अमड़ेक
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1857 की क्रांति की पृष्ठभूमि पर लिखे गए रस्‍किन बाँड के लघु उपन्‍यास "ए फ़ाइट ऑफ़ पीजन्‍स" का अनुदित संस्‍करण है "परवाज़"। जिसमें बग़ावत है, इंसानियत है, भारतीयों का अंग्रेज़ो के प्रति गहरा आक्रोश है, उन्‍हें एक होकर देश से खदेड़ने की पहल है, और है एक मुसलमान का एक अंग्रेज़ लड़की के लिए बेपनाह प्‍यार

ये प्‍यार एकतरफ़ा था, लेकिन प्‍यार तो प्‍यार होता है और वो हर तरफ से होता है, हाँ, ये बात और है कि हर तरफ के लोग उसे समझ नहीं पाते।इस एकतरफ़ा प्रेम कहानी से भी अधिक इस उपन्‍यास का उजला पक्ष एक हिंदू और मुसलमान परिवारों द्वारा एक अंग्रेज़ परिवार के सदस्‍यों को बचाने की कोशिशें हैं, जो क्रांति के दौरान अपने मुखिया के मारे जाने और अपने घर के जलाए जाने पर जिंदगी के लिए भटकने को मजबूर हो जाते हैं।

इस परिवार को बचाने की ज़ोखिम पहले एक हिंदू परिवार उठाता और फिर एक मुसलमान पठान परिवार। क्रांति के समय हिंदू और मुसलमान का एक होकर और इंसानियत के दायरे में रहते हुए अंग्रेज़ो के ख़िलाफ़ लामबंद होना, उपन्‍यास का यह पक्ष वाकई दिल को छू लेने वाला है या यू कहें कि अब बन गया है क्‍योंकि यदि इस उपन्‍यास की समीक्षा उसी क्रांति के दौर में की जाती तो शायद इसका उल्‍लेख उतना प्रासंगिक नहीं होता जितना अब है।
 
  उपन्‍यास में लेखक ने जिस कल्‍पनाशीलता का परिचय दिया है वो अद्भुत है इसे पढ़ते हुए यूँ लगता है जैसे उपन्‍यास उसी समय लिखा गया हो। तारा जोशी ने अनुवाद में उपन्‍यास का मर्म डालने की पूरी कोशिश की है।       


क्‍योंकि 1857 के हालात 1947 और 1975 से अलग थे जब बँटवारा हुआ और जब हमने उसकी कीमत चुकाई और बेशक़ आज भी चुका रहे हैं. उस समय न कोई हिंदू था ना मुसलमान, सब स्‍वराज के भूखे क्रांतिकारी थे, सब इंसान थे भोलेभाले रामजीमल भी और रूथ का दीवाना जावेद खान भी।

उपन्‍यास में लेखक ने जिस कल्‍पनाशीलता का परिचय दिया है वो अद्भुत है इसे पढ़ते हुए यूँ लगता है जैसे उपन्‍यास उसी समय लिखा गया हो। तारा जोशी ने अनुवाद में उपन्‍यास का मर्म डालने की पूरी कोशिश की है।
पुस्तक-परवाज़
लेखक- रस्किन बाँड
अनुवादक-तारा जोशी
कीमत-अस्सी रुपए
प्रकाशक-पेंगुइन बुक्स इंडिया