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Written By ND

पूरे शरीर में फुंसियाँ...

पूरे शरीर में फुंसियाँ... -
- डॉ. कैलाशचंद्र दीक्षित

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बीमारी को आज हम जिस रूप में देखते हैं उसकी जड़ें कहीं भीतर अतीत में छिपी होती हैं। बीमारी की शुरुआत में ही उसे दबा देने से वह किसी अन्य विकृति के रूप में सामने आ जाती है। इसलिए होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति मर्ज को पूरी तरह निकालने में विश्वास रखती है। इससेइलाज स्थायी होता है तथा मरीज फिर उस बीमारी से हमेशा के लिए मुक्त हो जाता है।

यह एक 45 साल की महिला का केस है जिसे 15 साल से पूरे शरीर में बार-बार फुंसियाँ होने की समस्या थी। समस्या की शुरुआत पैर पर एक मामूली फुंसी से हुई थी। शुरुआत में यह छोटी सी थी लेकिन थोड़े ही समय में यह बढ़ गई और वहाँ सूजन के साथ दर्द रहने लगा। दर्द की तीव्रता इतनी होती थी कि मरीज तड़पकर रोने लगती थी। चिकित्सक को दिखाया तो उन्होंने फुंसी सूखने के लिए एक हफ्ते के लिए एंटीबायोटिक्स दवाएँ दीं।

दवाओं से दर्द और सूजन कम हो गई और महिला यह महसूस करने लगी कि वह अच्छी हो गई है
  बीमारी को आज हम जिस रूप में देखते हैं उसकी जड़ें कहीं भीतर अतीत में छिपी होती हैं। बीमारी की शुरुआत में ही उसे दबा देने से वह किसी अन्य विकृति के रूप में सामने आ जाती है। इसलिए होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति मर्ज को पूरी तरह निकालने में विश्वास रखती है।      
। चूँकि महिला को पहली बार कोई फोड़े-फुंसी की शिकायत हुई थी इसलिए उसने और परिवार में किसी ने गंभीरता से नहीं लिया। लेकिन 20 दिन बाद दूसरे स्थान पर फिर एक फुंसी उभर आई।

इस बार भी दर्द और सूजन थी तथा बड़ी मात्रा में मवाद जमा हो गया था। इस बार चिकित्सक ने सर्जन से सलाह लेने के लिए कहा, क्योंकि फुंसी का आकार काफी बड़ा था और चीरा लगाकर ही मवाद पूरी तरह निकाला जा सकता था। सर्जन ने चीरा लगाकर मवाद निकाल दिया और घाव सुखाने के लिए एंटीबायोटिक्स खाने की सलाह दी।

इस बार महिला और परिवारजन सभी फुंसी का आकार देखकर घबरा गए थे और उन्होंने फुंसी होने का कारण पता लगाने के लिए जाँच कराने का निर्णय लिया।
कुछ समय तक महिला स्वस्थ रही, लेकिन 4-5 महीने बाद ही फिर एक छोटी सी फुंसी उभर आई जो बाद में बड़ी हो गई। इसमें सूजन के साथ दर्द रहने लगा। इस बार महिला ने सर्जन से इलाज करवाने में देर नहीं लगाई। इस बार भी चीरा लगाकर मवाद साफ करना पड़ा और एंटीबायोटिक्स के डोज खाना पड़े। बार-बार फुंसी होने का कारण जाँचने के लिए खून की जाँच भी कराई गई, लेकिन उसकी रिपोर्ट में कुछ खराबी नहीं मिल सकी। हार-थककर सभी ने इस ओर से ध्यान हटा लिया।

अगले कुछ महीनों तक कोई समस्या नहीं हुई। कुछ महीनों बाद फिर से फुंसी उभरकर आ गई। इस बार फुंसी में सूजन और दर्द के साथ खुजली की भी शिकायत साथ आई। खुजली इतनी तीव्रता से होती थी कि महिला खुजा-खुजाकर फुंसी फोड़ लेती थी और उसमें से खून निकलने लगता था। खुजली का कोई समय निश्चित नहीं था, वह कभी भी और कहीं भी होने लगती थी। अब स्थिति इतनी बिगड़ चुकी थी कि फुंसियाँ पूरे शरीर पर उभर आईं।

कभी बाँहोंपर उभरती और कुछ दिनों बाद अपने आप गायब हो जाती थीं तथा दूसरे स्थान पर उभर आती थीं। ऐसे ही इलाज कराते हुए कभी ठीक तो कभी समस्या से जूझते हुए 10 साल बीत गए। इस बीच महिला ने इतनी तरह का इलाज करा लिया कि वह अवसादग्रस्त रहने लगी। महिला की कोई भी समस्या का हल नहीं निकल रहा था। खुजली से वह इतनी परेशान रहती थी कि चार लोगों के सामने आने में उसे शर्म महसूस होने लगी। महिला ने कई चिकित्सकों और सर्जनों से इलाज करा लिया, लेकिन कोई हल नहीं निकल सका। महिला ने इलाज कराने में कसर नहीं छोड़ी।

घरेलू नुस्खों से लेकर हर तरह की वैकल्पिक चिकित्सा आजमा ली गई। इसी सब में 5 साल और बीत गए। समस्या ज्यों की त्यों मौजूद थी। किसी ने महिला को होम्योपैथी पद्धति से इलाज कराने की सलाह दी। उसने हमसे इलाज के लिए संपर्क किया। महिला की हिस्ट्री लेते समय मालूम हुआ कि 25 साल पहले उसे एलर्जी के कारण ददोड़े उभर आए थे।

उसका इलाज कराया गया तथा समस्या का तात्कालिक निदान हो गया। इसके बाद से ही उसे फुंसियों की समस्या ने जकड़ लिया था। मरीज के लक्षणों के आधार पर हमने सल्फर की खुराक से इलाज शुरू किया। फुंसियों के लिए अर्निका मोंट की खुराक दी गई। मरीज का इलाज छः महीने तक चला और वह ठीक होने लगी। अब महिला की फुंसियाँ फूटने की शिकायत कम होते-होते हमेशा के लिए गायब हो गई।