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Written By WD

आँखें सुर्ख होने का मौसम

डॉ. प्रशांत भारतीय

आँखें सुर्ख होने का मौसम -
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इस मौसम में कंजक्टिवाइटिस यानी आँखें लाल होने की बीमारी महामारी के तौर पर फैल रही है। इस बीमारी का कीटाणु अपनी सात दिन की उम्र पूरी करके ही खत्म होता है। इस दौरान मरीज को चैन नहीं पड़ता। उसे हर घड़ी यही लगता रहता है कि उसकी आँख में रेत जैसा कुछ गड़ रहा है। दर्द निवारक गोलियों और एंटिबायोटिक आई ड्रॉप से कंजक्टिवाइटिस में राहत मिलती है।

इस मौसम में अनुकूल वातावरण मिलने के कारण मक्खियाँ बहुत तेजी से पनपती हैं। बारिश की कई बीमारियों के लिए मक्खियाँ ही जिम्मेदार हैं। इनमें से एक है कंजक्टिवाइटिस यानी आँखें लाल सुर्ख हो जाने की बीमारी। इस बीमारी में नेत्र गोलक के श्वेत हिस्से को ढँककर रखने वाली झिल्ली (कंजक्टिवा) तथा पलकों में तेज जलन होती है।

कंजक्टिवाइटिस से दृष्टि को कभी कोई गंभीर क्षति नहीं पहुँचती, लेकिन जब तक यह ठीक नहीं होती मरीज को बेचैन किए रहती है। यह बीमारी बैक्टीरिया, वायरस अथवा ऐसे पदार्थों की एलर्जी से होती है जो आँखों में जलन पैदा करते हैं। यह सर्दी-जुकाम के लिए जिम्मेदार वायरस के कारण भी हो सकती है। इसमें कान का संक्रमण, सायनस का संक्रमण तथा गले की खराश के लिए जिम्मेदार वायरस भी शामिल हैं।

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जिन बच्चों को एलर्जी के कारण जल्दी ही सर्दी-खाँसी और अस्थमा हो जाता है उन्हें कंजक्टिवाइटिस भी जल्दी होता है। एलर्जिक कंजक्टिवाइटिस घास के पराग कणों अथवा डस्ट स्माइट से भी हो जाता है। धूल, धूप और धुएँ किसी से भी कंजक्टिवाइटिस भड़क सकता है।

लक्षण
कंजक्टिवाइटिस के लक्षण हर व्यक्ति में अलग-अलग हो सकते हैं। सबसे आम लक्षण है आँखों में जलन और रेत कणों के अंदर होने का एहसास होना। अंदरूनी पलकें और आँखों की किनोरें तक लाल सुर्ख हो जाती हैं। आँखों से लगातार पानी भी गिरता है। सुबह सोकर उठने पर दोनों पलकें आपस में चिपकी हुई मिल सकती हैं। कई लोगों की आँखें सूज जाती हैं और वे तेज रोशनी के प्रति संवेदनशील हो जाती हैं।

कैसे फैलता है संक्रमण
कंजक्टिवाइटिस का संक्रमण आपसी संपर्क के कारण फैलता है। इस रोग का वायरस संक्रमित मरीज के उपयोग की किसी भी वस्तु जैसे रूमाल, तौलिया, टॉयलेट की टोंटी, दरवाजे का हैंडल, टेलीफोन के रिसीवर से दूसरों तक पहुँचता है। कम्प्यूटर का की बोर्ड भी इसे फैलाने में सबसे बड़ा सहायक साबित होता है।

कैसे करें देखभाल
बैक्टीरिया से संक्रमण होने की आशंका में नेत्र रोग विशेषज्ञ एंटिबायोटिक ड्रॉप या मलहम लगाने की सलाह दे सकता है। बर्फ की सिंकाई और दर्द निवारक से भी कंजक्टिवाइटिस की जलन में राहत मिलती है। मरीज अपनी आँखों की किनोरों को गर्म पानी में भिगोए हुए रुई के फाहों से साफ कर सकते हैं। इससे पलकों को राहत मिलती है तथा वे चिपकती भी नहीं। रात को मलहम लगाकर सोने से पलकों के चिपकने की समस्या से भी छुटकारा मिल सकता है। संक्रमित होने पर नियमित धूप का चश्मा पहनें।

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क्या हो सकती है हानि
कंजक्टिवाइटिस का वायरस गंभीर नुकसान नहीं पहुँचाता। अगर किसी मरीज की आँखों में अधिक कीचड़ आता है तो उसे नेत्ररोग विशेषज्ञ की सलाह लेना चाहिए। कई प्रजाति के वायरसों से कार्निया पर धब्बे हो जाते हैं। ये धब्बे समय के साथ निकल भी जाते हैं।

क्या न करें
केमिस्ट की सलाह पर कोई ड्रॉप न खरीदें। इनमें तेज स्टेरायड्स भी हो सकते हैं, जिनसे कोर्निया में गंभीर संक्रमण भी हो सकता है। इससे कोर्निया में अल्सर भी हो सकता है।

आँखों को मसलें अथवा रगड़ें नहीं।

संक्रमित व्यक्ति का तौलिया, रूमाल, धूप का चश्मा वगैरह का इस्तेमाल न करें।

पीड़ित कहीं बाहर ना जाएँ।