गुरुवार, 28 मार्च 2024
  • Webdunia Deals
  1. मनोरंजन
  2. »
  3. पर्यटन
  4. »
  5. वन्य-जीवन
  6. ...इनकी हरियाली पर मरते हैं परिंदे!
Written By WD

...इनकी हरियाली पर मरते हैं परिंदे!

विलुप्त हो रहे वटवृक्षों का संरक्षण जरूरी

World Environment day 2012 | ...इनकी हरियाली पर मरते हैं परिंदे!
किसी भी रोड के किनारे सदाबहार हरियाली से लदे विशाल पेड़ों की छाया में राहगीरों को सुकून मिलता है, शाम होते ही इन पर पक्षियों का कलरव मन को आनंद देता है। इनके हरे-भरे पत्तों से निकलती प्राणवायु जीवन देती है।

खूब लगाएं पीपल, गूलर और बरगद के पौधे :

जी हां! हम बात कर रहे हैं फायकस प्रजाति के विशाल वट-वृक्षों की, जो बदलते पर्यावरण के साथ ही तेजी से विलुप्त होते जा रहे हैं। इस प्रजाति में आने वाले बरगद, पीपल, गूलर व पाकर आदि श्रेणी के पेड़ अब गिने-चुने ही बचे हैं।

विशाल जगह में फैलकर इंसान व प्राणियों को विविधता का आयाम देने वाले इन पेड़ों के लिए इंसान के दिल में जगह छोटी होती जा रही है। जगह घेरने का हवाला देकर इन्हें आमतौर पर लगाने से बचा जाता है और तो और प्राकृतिक रूप से कहीं पल्लवित होता दिखाई दे तो इसे काट दिया जाता है।

दिलचस्प बात यह है कि इन पेड़ों को प्रकृति में बनाए रखने के लिए न सिर्फ विज्ञान आधार देता है, बल्कि हमारी परंपराओं में भी इन्हें पूजनीय बताया गया है।

FILE
मुख्य वन संरक्षक पीसी दुबे के अनुसार वट-वृक्ष परिवार व हाईमेनोप्टोरा कुल के कीट व इनके बीज के बीच अनूठा संबंध है। एक 20 से 25 फुट का पेड़ है तो दूसरा अति सूक्ष्म कीट। दोनों एक साथ विकसित हुए और मानव जीवन का पूरक बन गए। दोनों की करीब नौ सौ से ज्यादा प्रजातियां हैं। इन पेड़ों पर कीटों के साथ ही पक्षियों की भी सौ से अधिक प्रजातियों का जीवन निर्भर होता है।

मप्र के वनों में वटवृक्ष की 20 प्रजातियां हैं। इस कुल की खासियत यह है कि इनके फल पक्षियों व कीड़ों को आकर्षित करते हैं। उन्होंने बताया इनकी संरचना अद्भुत होती है। एक फल में नर व मादा दोनों होते हैं। इनसे निकलने वाली वाष्पशील महक कीड़ों को आकर्षित करती है। इन्हीं से इनकी संतति आगे चलती है।

FILE
पक्षियों का घरौंदा :- पक्षियों के घरौंदे को लेकर वनस्पत्ति शास्त्री डॉ. किशोर पंवार का कहना है कि इन पेड़ों का दूसरा अनूठा पहलू भी है। यह साल भर हरे तो रहते ही हैं। साथ ही इनके फल पक्षियों को प्रिय होते हैं।

खासकर बुलबुल, तोता-मैना, चिड़िया प्रजाति का तो यह बसेरा होता है। गूलर पर तो साल में तीन बार फलों की बहार आती है। सबसे बड़ी बात तो यह सौ साल तक बने रहते हैं।

प्रतिवर्ष वन विभाग मानसून में जंगलों के साथ उचित स्थानों पर हजारों की संख्या में इन वृक्षों को लगाते हैं और अधिक से अधिक पौधें लगाने की योजना भी बनाते हैं। आजादी के बाद से देश में बड़े पैमाने पर पेड़ लगाने का दायित्व वन विभाग का ही रहा। वन विभाग के पेड़ लगाने के आंकड़े हमेशा करोड़ों में रहे हैं।

गूलर, पीपल व बरगद ये सभी सीधे कलम से ही लग जाते हैं बाकि पेड़ों के लिए लाखों रुपए के बीज खरीदना पड़ते हैं लेकिन बरगद, पीपल के लिए बीज की जरूरत नहीं होती।