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Written By WD

पित्ताशय की पथरियाँ

पित्ताशय की पथरियाँ -
डॉ. विशाल जै
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पित्ताशय की पथरी बनने के कारणों का अभी तक पता नहीं चला है, लेकिन माना जाता है कि यह मोटापे, डायबिटीज, आनुवांशिक तथा रक्त संबंधी बीमारियों की वजह से हो सकती है। आमतौर पर 85 प्रतिशत लोगों के पित्ताशय में यह पथरी 'चुपचाप' पड़ी रहती है। इनसे कोई कष्ट नहीं होता। जिन लोगों को पेट के दाएँ तरफ ऊपरी हिस्से में दर्द होता है उन्हें पथरी की समस्या हो सकती है।

मनुष्य शरीर में अनेक प्रकार की पथरियों की समस्या हो सकती है, जिसमें किडनी की पथरियाँ एवं पित्त की थैली की पथरी प्रमुख है। गाल स्टोन्स एक बहुत ही आम समस्या है। देश के पूर्वी एवं उत्तरी राज्यों में मरीजों की संख्या अधिक है। इस तरह की पथरी महिलाओं में अधिक पाई जाती है।

पित्त की थैली (गाल ब्लेडर) क्या है : हमारे शरीर में नाशपाती के आकार का थैलीनुमा यह अंग लीवर के नीचे पाया जाता है। सामान्यतः इसका कार्य पित्त को इकट्ठा करना एवं उसे गाढ़ा करना है। आम धारणा के विपरीत यह अंग स्वयं पित्त नहीं बनाता है।

क्या होता है पित्त : यह एक पाचन रस है जो कि लीवर द्वारा बनाया जाता है। यह वसायुक्त पदार्थों के पाचन में मदद करता है।

पित्त पथरियाँ (गाल स्टोन्स) : एक से लेकर सैकड़ों की संख्या में हो सकती हैं। छोटी या बड़ी साइज में पाई जाती हैं। ये पित्त की थैली में बार-बार सूजन आने के कारण बनती हैं। ये पथरियाँ किडनी स्टोन्स से अलग प्रकार की होती हैं।

पथरी बनने का कारण : मूल कारण ज्ञात नहीं है, किंतु कुछ कारक हैं जो इसके बनने में सहायक हैं- 1. उम्र : 30 से 40 वर्ष में सबसे ज्यादा वैसे किसी भी उम्र में हो सकती है। 2. लिंग : पुरुषों की तुलना में महिलाओं में दो गुना ज्यादा होने की आशंका। 3. मोटापा। 4. डायबिटीज (मधुमेह)। 5. तेजी से वजन घटना (क्रेश डायटिंग)। 6. ज्यादा भूखा रहना। 7. आनुवांशिक खून संबंधी बीमारियाँ। 8. कुछ भौगोलिक परिस्थितियाँ।

लक्षण : 80 से 85 प्रतिशत मरीजों में 'साइलेंट गाल स्टोन्स' होते हैं अर्थात इनसे कोई कष्ट नहीं होता।

पेट दर्द जो कि पेट के दाएँ तरफ ऊपरी भाग में होता है, जिसे 'कोलिक' या 'गाल स्टोन्स अटैक' भी कहते हैं। यह दर्द पीठ में या दाएँ कंधे की तरफ भी हो सकता है। यह दर्द कुछ मिनटों से लेकर कई घंटों तक बना रह सकता है एवं सामान्य से लेकर अत्यंत पीड़ादायक भी हो सकता है।

* ज्यादा गैस बनना, पेट फूलना एवं भारीपन होना।

* अपचन विशेषकर वसायुक्त एवं मिर्ची-मसाला वाले पदार्थों का सेवन करने पर।

पथरी के दुष्परिणाम एवं जटिलताएँ
बार-बार पेट में दर्द होना।

मवाद (पस) बनना।

थैली का सड़ना (गैंगरीन)।

थैली का फूटना (परफोटेशन)।

पेनक्रियाज में सूजन।

पीलिया।

पित्त की थैली का कैंसर।

उपरोक्त कोई भी लक्षण या जटिलताएँ उत्पन्न होने पर तुरंत अपने सर्जन से संपर्क करें एवं उनकी सलाह अनुसार इलाज करवाएँ। पेट दर्द एवं सूजन आने पर एंटीबायोटिक्स एवं दर्द की दवाइयाँ दी जाती हैं, परंतु इस समस्या का स्थायी इलाज ऑपरेशन ही है। किसी भी प्रकार की औषधियाँ या जड़ी-बूटियाँ इसे गला नहीं सकती हैं, अतः मरीज भ्रमित न हों।

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ऑपरेशन : चूँकि बार-बार सूजन आने से पित्त की थैली खराब हो जाती है एवं शरीर के लिए अनुपयोगी हो जाती है, अतः ऑपरेशन में पथरी के साथ पित्त की थैली भी निकाल दी जाती है, जिससे यह समस्या भविष्य में दोबारा कभी नहीं होती है।

ऑपरेशन दो पद्धतियों द्वारा किया जाता है। पहली पारंपरिक विधि जिसमें चीरा लगाकर ऑपरेशन किया जाता है। दूसरी विधि जो कि आजकल सर्वाधिक प्रचलित है एवं 'गोल्ड स्टैंडर्ड' है- लेप्रोस्कोपिक कोलीसिसटेक्टमी (लेप कोली) यानी दूरबीन पद्धति द्वारा ऑपरेशन।

दूरबीन पद्धति द्वारा ऑपरेशन के फायदे
* कम दर्द।

* बहुत ही सूक्ष्म छोटे-छोटे चीरे।

* कम दवाओं का उपयोग।

* अस्पताल से जल्दी छुट्टी।

* काम पर जल्दी वापसी।

* गाल ब्लेडर शरीर से निकालने पर परेशानी नहीं होती है।

* पित्त लीवर द्वारा सीधे आँतों में चला जाता है व पाचन सुचारु रूप से होने लगता है।

ऑपरेशन के लिए भर्ती होने के बाद
सामान्यतः ऑपरेशन से एक दिन पूर्व अस्पताल में मरीज को भर्ती किया जाता है। कुछ सामान्य जाँचें की जाती हैं एवं निश्चेतना (एनस्थेशिया) के डॉक्टरों द्वारा ऑपरेशन पूर्व जाँच की जाती है। ऑपरेशन के पूर्व 6-8 घंटे तक खाली पेट रहना पड़ता है।

अगले दिन सुबह ऑपरेशन के पश्चात 2-3 घंटे रिकवरी रूम में रखा जाता है एवं उसके बाद वार्ड में शिफ्ट कर दिया जाता है। शाम तक पानी एवं अन्य पेय पदार्थ शुरू किए जाते हैं एवं मरीज चल-फिर सकता है। सामान्यतः अगले दिन मरीज की छुट्टी कर दी जाती है एवं बहुत ही जल्दी मरीज अपना सामान्य जीवन एवं गतिविधियाँ शुरू कर सकता है।