मंगलवार, 16 अप्रैल 2024
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Written By ND

लोकतंत्र की लौ जलाए हुए है सू की

लोकतंत्र की लौ जलाए हुए है सू की -
- प्रदीप कुमार दीक्षित

एक राष्ट्रीय स्तर की नेता से यह कहा गया कि आप चुपचाप देश से बाहर चली जाएँ, हम आपके जाने की पूरी व्यवस्था कर देते हैं वरना आपको नजरबंद ही रखा जाएगा। और नेता भी ऐसी जिनकी पार्टी तीन-चौथाई बहुमत से संसदीय चुनाव जीत चुकी थी। म्यांमार में नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी की नेता आंग सांग सू की के साथ यही हुआ।

उन्होंने देश की सत्ता पर जबरन कब्जा जमाए सैन्य शासकों की बात नहीं मानी और निर्वासित जीवन जीने से इंकार कर दिया। वे जानतीं थीं कि यदि वे चलीं गई तो देश में लोकतंत्र बहाली की राह और कठिन हो जाएगी। ब्रिटेन में जब उनके पति का निधन हुआ तो वे अंतिम संस्कार तक में नहीं गईं। यदि वे जातीं तो उनका म्यांमार वापस लौटना लगभग असंभव हो जाता। हाल ही में सू की की नजरबंदी की मियाद और बढ़ा दी गई है।

म्यामांर में 1990 में संसदीय चुनाव हुए थे। सू की ने नजरबंद रहते हुए चुनाव लड़ा और सफलता अर्जित की। लेकिन सैन्य शासकों ने चुनाव नतीजों को मानने से ही इंकार कर दिया। उन्होंने सू की की पार्टी के अन्य बड़े नेताओं को भी जेल में डाल दिया। विरोध करने वालों को बल प्रयोग करके खामोश कर दिया। सू की को नजरबंदी के 6 वर्ष बाद अंतरराष्ट्रीय दबाव के चलते पहली बार 1995 में रिहा किया गया।

सू की ने रिहाई के बाद सेना के शासन को समाप्त करने के लिए जनमत बनाने का प्रयास किया। इस पर उन्हें 2000 में फिर नजरबंद कर दिया गया। उन्हें 2002 में रिहा करने के बाद 2003 में फिर नजरबंद कर दिया गया है। म्यांमार की सेना किसी भी हालत में निर्वाचित प्रतिनिधियों को सत्ता सौंपने के लिए तैयार नहीं है।

म्यांमार 1948 में ब्रिटेन के शिकंजे से मुक्त हुआ था। वहाँ से जाते-जाते भी अँगरेजों की कुटिल चालें चलतीं रहीं और उन्होंने राष्ट्रपिता जनरल आंग सान और उनके कुछ साथियों की हत्या करवा दी। वे सू की के पिता थे और जब उनकी हत्या हुई तब सू की महज 2 वर्ष की थीं। सेना ने सत्ता का स्वाद 1962 में ही चख लिया था तब उसने ऊ नू की निर्वाचित सरकार को बेदखल करके स्वयं सत्ता संभाल ली थी। तब से वह शासन की बागडोर अपने हाथों में रखने का प्रयास करती रही है।

अमेरिका, ब्रिटेन, भारत और अन्य देश म्यांमार की सैन्य सरकार के खिलाफ जोरदार आवाज नहीं उठा सके हैं। अमेरिका ने बेशक म्यांमार पर आर्थिक प्रतिबंध लगा रखे हैं, लेकिन अमेरिकी और ब्रिटिश तेल कंपनियाँ वहाँ खनन में लगी हुई हैं। म्यांमार को चीन का समर्थन प्राप्त है। वह म्यांमार को सैन्य और अन्य सहायता प्रदान करता रहता है। संयुक्त राष्ट्र और भारत समेत अन्य देश समय-समय पर सू की को रिहा करने की अपील करते रहे हैं लेकिन म्यांमार के सैन्य शासकों को उन्हें नजरबंद रखना ही रास आता है।

यह भी सही है कि अंतरराष्ट्रीय दबाव के चलते ही म्यांमार के सैन्य शासकों ने सू की जान लेने की कोशिश नहीं की है। सू की को नोबेल शांति पुरस्कार मिल चुका है, लेकिन वे इसे प्राप्त करने नहीं जा पाईं। सू की ने भारत और ब्रिटेन में शिक्षा प्राप्त की है। उन्होंने ब्रिटेन में विवाह किया। उनके दो बेटे हैं, जो ब्रिटेन में ही हैं। सू की म्यांमार की जनता के लिए नायिका हैं तो सैन्य शासकों के लिए खलनायिका। फिलहाल इस बासठ वर्षीय नेता के नजरबंदी से रिहा होने के कोई आसार नहीं हैं। वे देश में लोकतंत्र बहाली की उम्मीद जगाए रखे हुए हैं और यही उनकी उपलब्धि है।