गुरुवार, 25 अप्रैल 2024
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Written By रवींद्र व्यास

मैं सच्चे मन से गाना चाहता हूँ

मैं सच्चे मन से गाना चाहता हूँ -
15 अगस्त ज्यादा दूर नहीं है, और वे नजारे भी दूर नहीं है जब राष्ट्रभक्ति और राष्ट्रप्रेम के नारे लगाते लोग चीखते-चिल्लाते मिलेंगे। हम अपने अनुभव से जानते हैं कि किस तरह से हमने अपने असल आदर्शों को भुला दिया है। अब वे चौराहों पर मूर्ति बने खड़े मिलते हैं। उन पर जमती धूल-मिट्टी और बीट बारिश के मौसम में ही साफ होती है।

उनके आदर्शों और सिद्धांतों को हमने दीमक के हवाले कर दिया है। 15 अगस्त एक उत्सव में सिमट कर रह गया है जहाँ सिर्फ रस्म अदायगी होती है और हम उन गानों पर बेहूदा ढंग से उछल-कूद करते हैं जो आजादी के लिए खून बहा चुके लोगों की सुरीली यादें हैं।

हम गला फाड़ के कितना चिल्लाते हैं कि मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे-मोती, मेरे देश की धरती है। इन गानों को चिल्लाकर गाने में न तो भाव होता है, न ही हमारे देश की आजादी के लिए कुर्बान हुए लोगों की कोई सच्ची याद।

लेकिन ऐसे में यह खबर आती है कि बीजिंग में १० मीटर की एयर राइफल स्पर्धा में एक भारतीय युवा अभिनव बिंद्रा सोना जीत चुका है तो मैं सच्चे मन से तिरंगा फहराना चाहता हूँ।

संसद में नोट की गडि्डयाँ उछलती हैं तो अहमदाबाद में लोगों के चिथड़े। आर्थिक उदारवाद में चारों तरफ लूट-खसोट जारी है। मेन होल में गिरकर या सड़क दुर्घटनाओं में हमारे देश के बच्चे मारे जाते हैं।

सरे राह महिलाओं को उठाकर ले जाते संभ्रांत उनके साथ बलात्कार करते हैं। कहीं किसान आत्महत्या करते हैं तो कहीं दहेज के कारण एक लड़की पँखे से झूल जाती है। एक बेरोजगार को नौकरी नहीं मिलती और वह तेल डालकर आग लगा लेता है।

हम आपस में झगड़ते हैं, एक-दूसरे के खून के प्यासे, सारी पार्टियाँ सपने दिखाकर हर बार छल करती हैं, धोखा देती हैं। वे अपना देखती हैं, देश जाए भाड़ में। तब ऐसे में ओलिम्‍पिक में कोई युवा सोना जीतता है, यह उसकी अपनी मेहनत और लगन का हासिल है। उसे कितना परिश्रम करना पड़ा होगा, कितनी गुटबाजी का सामना करना पड़ा होगा यह कहानी दूसरी है।

हमारे खेल अधिकारी-पदाधिकारी इस सोने की चमक पर उछल-कूद करेंगे, बयान देंगे कि आखिर निराशा छटी, सूरज निकला और हमने सोना जीता। यह हमारी राष्ट्रीय मक्कार का एक धांसू सीन है। मेहनत कोई करता है, श्रेय कोई और ले उड़ता है।

इस उपलब्धि पर मंत्रियों, खेल संगठनों, अधिकारियों से पूछा जाना चाहिए कि आखिर क्या कारण है कि देश में ऐसी खेल संस्कृति विकसित नहीं कर पाए, जिसमें बेहतरीन इंफ्रास्ट्रक्चर हो, अंतरराष्ट्रीय स्तर की सुविधाएँ हों, श्रेष्ठतम कोच हों, खिलाड़ियों के प्रशिक्षण की एक माकूल व्यवस्था हो? और साथ ही हो बिना गुटबाजी और राजनीति के प्रतिभाओं को पहचानने की अचूक दृष्टि।

खेल नीतियाँ बनती हैं, योजनाएँ बनती हैं, लेकिन हम हमेशा ओलिम्‍पिक में एक सोने के लिए तरसते हैं। यदि एक अभिनव बिंद्रा सोना लाता है तो सारे नेता-अधिकारी ऐसा जश्न मनाते हैं कि यह सब उनके कारण संभव हुआ है।

मैं पूरी ताकत के साथ कहना चाहता हूँ कि ओलिम्‍पिक में अभिनव ने जो सोना हासिल किया वह उसकी अपनी अकेली मेहनत, लगन का परिणाम है। यह उसी की इच्छा शक्ति से उसने अर्जित किया है। यह लक्ष्य को भेदने की उसी की अचूक नजर है।

एक जज्बा, कि कुछ हासिल करना है जो उसके लहू में दौड़ रहा है। और सच कहूँ तो उसके लहू में जो दौड़ रहा वही सच्चा राष्ट्रप्रेम है, वही सच्ची राष्ट्रभक्ति है। उसे ही तिरंगा फहराने का हक है। हमारे मंत्रियों को फिलहाल वोट की चिंता सता रही होगी, और ओलिम्‍पिक में हमारे खेल अधिकारी वहाँ के किसी पर्यटन स्थल की सैर कर रहे होंगे, खा-पी रहे होंगे।

आओ, ऐसे में हम अभिनव बिंद्रा को तिरंगा लहराते हुए देखें और सच्चे मन से गाएँ कि - मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे-मोती, मेरे देश की धरती। इस देश की धरती सोना उगले तो अभिनव जैसे युवाओं के कारण ही, संसद में गड्‍डी उछालते नेताओं के कारण नहीं।