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Written By भाषा

प्रेम व करुणा के शायर थे अली सरदार जाफरी

एक अगस्त को पुण्यतिथि पर विशेष

प्रेम व करुणा के शायर थे अली सरदार जाफरी -
'मेरा सफर' और 'सरहद' समेत अनेक कृतियों से उर्दू साहित्य को समृद्ध बनाने वाले अली सरदार जाफरी का नाम उर्दू अदब के महानतम शायरों में शुमार किया जाता है।

बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि उन्होंने अपने लेखन का सफर शायरी से नहीं बल्कि कथा लेखन से किया था। बहुमुखी प्रतिभा के धनी अली सरदार जाफरी का जन्म 1 अगस्त 1913 को उत्तरप्रदेश के बलरामपुर में हुआ।

शुरुआत में उन पर जिगर मुरादाबादी, जोश मलीहाबादी और फिराक गोरखपुरी जैसे शायरों का प्रभाव रहा। जाफरी ने 1933 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में दाखिला लिया और इसी दौरान वे कम्युनिस्ट विचारधारा के संपर्क में आए।

उन्हें 1936 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से निष्कासित कर दिया गया। बाद में उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक की शिक्षा पूरी की।

जाफरी ने अपने लेखन का सफर 17 वर्ष की ही उम्र में शुरू कर दिया। उनका लघु कथाओं का पहला संग्रह 'मंजिल' नाम से वर्ष 1938 में प्रकाशित हुआ। शुरुआत में वे हाजिन के नाम से लेखन किया करते थे, लेकिन कुछ ही समय बाद उन्होंने इस नाम को त्याग दिया।

उनकी शायरी का पहला संग्रह 'परवाज' नाम से वर्ष 1944 में प्रकाशित हुआ। वे 'नया अदब' नाम के साहित्यिक जर्नल के सह-संपादक भी रहे।

जाफरी प्रगतिशील लेखक आंदोलन से जुड़े रहे। वे कई अन्य सामाजिक, राजनैतिक और साहित्यिक आंदोलनों से भी जुड़े रहे। प्रगतिशील उर्दू लेखकों का सम्मेलन आयोजित करने को लेकर उन्हें 1949 में भिवंडी में गिरफ्तार कर लिया गया। तीन महीने बाद ही उन्हें एक बार फिर गिरफ्तार किया गया।

जाफरी ने जलजला, धरती के लाल (1946) और परदेसी (1957) जैसी फिल्मों में गीत लेखन भी किया। वर्ष 1948 से 1978 के बीच उनका नई दुनिया को सलाम (1948) खून की लकीर, अमन का सितारा, एशिया जाग उठा, पत्थर की दीवार, एक ख्वाब और पैरहन-ए-शरार और लहू पुकारता है जैसे संग्रह प्रकाशित हुए।

इसके अलावा उन्होंने मेरा सफर जैसी प्रसिद्ध रचना का भी लेखन किया। उनका आखिरी संग्रह सरहद के नाम से प्रकाशित हुआ। वर्ष 1999 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी की लाहौर यात्रा के दौरान उन्होंने इसका लेखन किया था।

इसी संग्रह की प्रसिद्ध पंक्ति है ''गुफ्तगू बंद न हो बात से बात चले''। जाफरी ने कबीर, मीर और गालिब के संग्रहों का संपादन भी किया। उन्होंने इप्टा के लिए दो नाटक भी लिखे। जाफरी ने दो डाक्यूमेंट्री फिल्में भी बनाईं। उन्होंने उर्दू के सात प्रसिद्ध शायरों के जीवन पर आधारित 'कहकशाँ' नामक धारावाहिक का भी निर्माण किया।

जाफरी को वर्ष 1998 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वे फिराक गोरखपुरी और कुर्तुल एन हैदर के साथ ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित होने वाले उर्दू के तीसरे साहित्यकार हैं।

उन्हें वर्ष 1967 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया। वे उत्तरप्रदेश सरकार के उर्दू अकादमी पुरस्कार और मध्यप्रदेश सरकार के इकबाल सम्मान से भी सम्मानित हुए। उनकी कई रचनाओं का भारतीय एवं विदेशी भाषाओं में अनुवाद हुआ। जाफरी का एक अगस्त 2000 को निधन हो गया।