मंगलवार, 23 अप्रैल 2024
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Written By ND

जरूरी है राष्ट्रीय सहमति

जरूरी है राष्ट्रीय सहमति -
- डॉ. कर्णसिंह

जम्मू-कश्मीर एक बार फिर अशांत है। इस बार विवाद श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड को वन विभाग की भूमि आवंटित करने के मुद्दे पर है। पहले बोर्ड को भूमि आवंटित करने के विरोध में कश्मीर घाटी में प्रदर्शन हुए और अब भूमि वापस विभाग को देने के फैसले के खिलाफ जम्मू क्षेत्र में कई सप्ताह से विरोध प्रदर्शन, बंद और कर्फ्यू का सिलसिला जारी है।

इस अशांति और हिंसा की वजह से कई लोगों की जानें गईं, संपत्ति का भारी नुकसान हुआ और जम्मू और कश्मीर दोनों ही क्षेत्रों में जनजीवन बुरी तरह प्रभावित हुआ है। आम लोगों को भारी परेशानी उठानी पड़ रही है। हालात दिन-ब-दिन बिगड़ते जा रहे हैं और अगर जल्दी ही इस समस्या के सर्व स्वीकार्य समाधान के लिए जरूरी कदम नहीं उठाए गए तो स्थिति नियंत्रण से बाहर होने की आशंका है।

इन घटनाओं पर मेरी लगातार नजर है। समस्या के हल के लिए मेरी राय में एक
  जहाँ तक भूमि का प्रश्न है, मेरी राय में जमीन का स्वामित्व वन विभाग के ही पास बना रहे और राज्य सरकार तीर्थयात्रियों की सुविधा के लिए आरामगाह, रसोई आदि के निर्माण का एक समयबद्ध कार्यक्रम घोषित करके उस पर तेजी से काम शुरू करे      
पाँच सूत्री फार्मूला बनता है, जिससे स्थिति को सामान्य करने, तनाव दूर करने और इस संवेदनशील एवं महत्वपूर्ण सीमांत राज्य में शांति बहाली में मदद मिलेगी। मेरे ये सुझाव मेरी पार्टी या पक्षकार की हैसियत से नहीं हैं, बल्कि मैं पवित्र अमरनाथ यात्रा से करीब छः दशकों से जुड़ा हूँ और मैं आज भी उस 'महादेव गिर दशनामी अखाड़ा न्यास' का अध्यक्ष-न्यासी हूँ, जहाँ श्रीनगर के बादशाह पुल के निकट भगवान शिव के पवित्र चिन्ह 'छड़ी मुबारक' को महंत की देखरेख में विश्राम के लिए रखा जाता है।

इस पवित्र छड़ी मुबारक की श्रीनगर से नागपंचमी के दिन शुरू होने वाली यात्रा, जो रक्षाबंधन पूर्णिमा के दिन पवित्र अमरनाथ गुफा में पहुँचकर पूरी होनी है, अमरनाथ यात्रा का सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक आयोजन मानी जाती है। हमें याद रखना होगा कि यह सारा मुद्दा भगवान शिव की पवित्र गुफा की यात्रा से जुड़ा है इसलिए इस मामले पर संवेदनशील होकर, लोगों की धार्मिक भावनाओं को केंद्र में रखकर विचार करना होगा।

इसी भावना के अंतर्गत मैं अपने सुझाव दे रहा हूँ। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जम्मू में दूसरे चरण का असंतोष तब फूटा जब एनएन वोहरा नए राज्यपाल बनकर आए। वोहरा का मैं निजी तौर पर बेहद सम्मान करता हूँ, लेकिन मौजूदा जटिल परिस्थितियों में मेरा सुझाव है कि उन्हें किसी अन्य राज्य में भेजकर उनकी प्रशासनिक क्षमता और अनुभव का सदुपयोग किया जाना चाहिए। वोहरा के स्थान पर जनरल जेजे सिंह (जो अभी अरुणाचल प्रदेश के राज्यपाल हैं) को जम्मू एवं कश्मीर का राज्यपाल नियुक्त किया जाना चाहिए। अपनी तमाम उत्कृष्ट व्यावसायिक योग्यताओं के अलावा सिंह इसी राज्य के हैं और उनका पारिवारिक आवास डोडा जिले के मरवाह में है।

कानूनी प्रावधान है कि 'जम्मू एवं कश्मीर के राज्यपाल यदि हिन्दू हैं, तो वे श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड के पदेन अध्यक्ष होंगे और अगर वे हिन्दू नहीं हैं, तो वे राज्य के किसी भी गणमान्य व्यक्ति को, जो हिन्दू धर्म को मानने वाला हो और बोर्ड का सदस्य बनने की सभी योग्यताएँ पूरी करता हो, बोर्ड के अध्यक्ष पद के लिए मनोनीत कर सकेंगे।'

जनरल सिंह की राज्यपाल पद पर नियुक्ति के बाद 'श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड' एक नए अध्यक्ष की नियुक्ति के साथ पुनर्गठित किया जा सकेगा, जिसमें जम्मू एवं कश्मीर के हिन्दू समुदाय और कश्मीरी पंडितों के प्रतिनिधियों को शामिल किया जा सकेगा। बोर्ड के अध्यक्ष पद के लिए मैं सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एएस आनंद का नाम सुझाना चाहूँगा, जो जम्मू एवं कश्मीर के ही रहने वाले हैं।

जहाँ तक भूमि का प्रश्न है, मेरी राय में जमीन का स्वामित्व वन विभाग के ही पास बना रहे और राज्य सरकार तीर्थयात्रियों की सुविधा के लिए आरामगाह, रसोई आदि के निर्माण का एक समयबद्ध कार्यक्रम घोषित करके उस पर तेजी से काम शुरू करे। ये काम अगले वर्ष शुरू होने वाली यात्रा से पहले पूरे कर लिए जाएँ। परंपरागत रूप से यह यात्रा एक महीने की होती है, जो अगस्त में रक्षाबंधन को श्रावण पूर्णिमा पर संपन्न होती है।

लेकिन यात्रियों की लगातार बढ़ती संख्या को देखते हुए यात्रा की अवधि को बढ़ाकर
  फिलहाल पहली जरूरत राज्य में शांति और कानून व्यवस्था की बहाली है, जिससे आम जनजीवन सामान्य हो सके और लोगों की परेशानियाँ खत्म हों। दोनों ही क्षेत्रों में इस अशांति की वजह से करोड़ों रुपए, पर्यटन उद्योग, व्यापार और संपत्ति की क्षति हो चुकी है      
दो महीने का कर दिया जाना चाहिए, जो प्रतिवर्ष एक जुलाई को प्रारंभ होकर 31 अगस्त को पूरी हो। इस अवधि के दौरान तीर्थयात्रियों की सुविधा के प्रबंधन और पवित्र गुफा में पूजा की व्यवस्था की पूरी जिम्मेदारी श्राइन बोर्ड को सौंपी जानी चाहिए और विवादास्पद भूमि को भी अस्थायी रूप से दो महीने की लीज पर बोर्ड को दे देना चाहिए।

इस मुद्दे पर हुए आंदोलन के दौरान कश्मीर और जम्मू में पुलिस गोलीबारी में मारे गए लोगों के परिजनों को पर्याप्त सहायता राशि और घायलों को इलाज के लिए पर्याप्त आर्थिक सहायता सरकार द्वारा दी जानी चाहिए। राष्ट्रीय राजमार्ग और अन्य रास्तों पर लगाए गए जाम किसी भी सूरत में सहन नहीं किए जाएँ और देश की सुरक्षा और राष्ट्रीय हितों के लिए इन्हें तुरंत हटाया जाना चाहिए।

हमें याद रखना चाहिए कि जम्मू एवं कश्मीर राज्य की एक विशेष परिस्थिति है और 1947 में जम्मू एवं कश्मीर रियासत ने भारत में मिलने के दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए थे, न कि विलय पत्र पर। इस दस्तावेज के तहत भारत सरकार मात्र तीन चीजों पर विचार कर सकती थी- रक्षा, संचार एवं विदेश नीति। जम्मू-कश्मीर प्रशासन को अन्य सभी विषयों में स्वायत्तता प्रदान की गई। इसी वजह से वहाँ धारा 370 लागू है।

वैसे जम्मू एवं कश्मीर में साझा संस्कृति रही है। यहाँ की तहजीब में मिल-जुलकर रहने की परंपरा है। सदियों से हिन्दू-मुसलमान साथ रहते रहे हैं, लेकिन सांप्रदायिक तत्वों ने माहौल को बिगाड़ दिया है। मैंने इस राज्य के उतार-चढ़ावों को अपनी आँखों से देखा है। यह एक बहुत बड़ी त्रासदी है। अब मैं उसमें जाना नहीं चाहता, लेकिन मुझे लगता है कि इस समस्या का कोई न कोई समाधान हमें सोचना चाहिए।

समाधान क्या हो, इस विषय में मैं अभी कहना नहीं चाहता हूँ। लेकिन हमें अपना दिल बनाना होगा कि कोई समाधान निकले। समाधान के लिए दोनों पक्षों को थोड़ा लचीलापन दिखाना होगा। मौजूदा अशांति और विवाद के मद्देनजर मैं जम्मू और कश्मीर दोनों इलाकों में सभी लोगों से अपील करता हूँ कि वे तनाव खत्म करें और हालात को समान्य बनाएँ। उसे आगे न बिगड़ने दें। मैं दोनों ही क्षेत्रों में इस मुद्दे पर भड़की भावनाओं को समझता हूँ।

एक तरह से ये भावनाएँ उस समस्या का लक्षण हैं, जो कश्मीर, जम्मू और लद्दाख के निवासियों के रिश्तों में गहराई से जड़ें जमाए हुए हैं। इस मूल समस्या को बेहद सावधानी से परखते हुए इस पर एक राष्ट्रीय सहमति बनानी होगी। लेकिन यह काम अब राज्य विधानसभा और लोकसभा के अगले चुनावों के बाद ही हो सकेगा।

फिलहाल पहली जरूरत राज्य में शांति और कानून व्यवस्था की बहाली है, जिससे आम जनजीवन सामान्य हो सके और लोगों की परेशानियाँ खत्म हों। दोनों ही क्षेत्रों में इस अशांति की वजह से करोड़ों रुपए, पर्यटन उद्योग, व्यापार और संपत्ति की क्षति हो चुकी है। हर चीज की एक हद होती है। अब हमें शांति, सहयोग और भाईचारे के रास्ते पर लौटना होगा। मुझे उम्मीद है कि मेरे द्वारा सुझाए गए उपायों पर अमल करके समस्या का समाधान शीघ्र किया जा सकेगा।
(लेखक देश के पूर्व केंद्रीय मंत्री, वरिष्ठ राजनेता और जम्मू-कश्मीर रियासत के पूर्व शासक हैं।)