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Written By ND

इंटीरियर डिजाइनर्स के लिए खुला आसमान

इंटीरियर डिजाइनर्स के लिए खुला आसमान -
- दिनेश दुब

इंटीरियर जितना जाना पहचाना शब्द है उतना ही गलत समझा गया क्षेत्र भी। सामान्यतया लोग जानकारी के अभाव में डिजाइनर को डेकोरेटर समझ लेते हैं। इंटीरियर डिजाइनर और इंटीरियर डेकोरेटर में जमीन आसमान का फर्क है। जब दोनों को समग्र दृष्टि से देखा जाए तब तक यह फर्क पता कर पाना मुश्किल है। छात्रों को यह शिक्षा प्रदान करने वाले इंस्टीट्यूट फ इंडिया, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिजाइन, एमआईटी इंस्टीट्यूट ऑफ डिजाइन जैसे कुछ ही चुनिंदा संस्थान हैं।

इंटीरियर डेकोरेटर किसी स्थान की साज-सज्जा करता है, उसे सुंदर बनाता है, ऐसेसरीज जोड़ता है यानि उस स्थान को डेकोरेट करता है। वहीं दूसरी ओर इंटीरियर डिजाइनर की समझ और अपेक्षाएँ व्यापक होती हैं। इंटीरियर डिजाइनर सर्वप्रथम वाल्यूम का ध्यान ऱखकर स्पेस प्लान करता है, इसके पश्चात उस स्थान का उपयोग करने वाले लोगों की संख्या समझता है और फिर आगे की और कार्रवाई करता है।

डिजाइनर को एरगोनॉमिक्स का ज्ञान होना बेहद आवश्यक है ताकि स्पेस प्लानिंग समुचित रूप से हो पाए। उदाहरण के लिए यदि डिजाइनर एक रेस्टारेंट की प्लानिंग कर रहा है तो वह आने वाले लोगों, वेटर्स व अन्य स्टॉफ की संख्या जानकर ही आगे बढ़ता है। यही नहीं उन लोगों का आना जाना, ट्रे या ट्रॉली की लंबाई-चौड़ाई व उपयोग किए जाने वाले अन्य उत्पादों को जानकर अपनी प्लानिंग को बेहतर बनाता है।
  इंटीरियर जितना जाना पहचाना शब्द है उतना ही गलत समझा गया क्षेत्र भी। सामान्यतया लोग जानकारी के अभाव में डिजाइनर को डेकोरेटर समझ लेते हैं। इंटीरियर डिजाइनर और इंटीरियर डेकोरेटर में जमीन आसमान का फर्क है।      


इंटीरियर के लिए उपयोग में आने वाले प्रत्येक मटेरियल का ज्ञान होना एक डिजाइनर के लिए अति आवश्यक है। वह उत्पादों के भौतिक एवं रसायनिक गुण जानकर सही जगह, सही अनुपात में उन्हें व्यवस्थित करता है। इससे वह स्थान इकॉनामिकल होने के साथ ही सुंदर बनता जाताहै। इंटीरियर डिजाइनर का ध्यान उपयोग में आने वाली एक छोटी कुर्सी पर भी रहता है। वह प्रयास करता है कि वह छोटी कुर्सी भी स्वयं बनाए ताकि किफायत के साथ ही खूबसूरती बरकरार रहे।

एक डिजाइनर प्रत्येक काम प्रेक्टिकल और फंक्शनल करता है। इसीलिए उसके छोटे से छोटे काम में भी गहरा चिंतन छुपा होता है। रंगों का उपयोग करते समय भी वह कलर सायक्लोजी पर ध्यान केन्द्रित करता है। वह स्थान, व्यक्ति, पेशा, उपयोग, वातावरण जैसे तत्वों को ध्यानमें रखकर सर्वश्रेष्ठ रंगों का चुनाव करता है।

उदाहरण के लिए पुरुष प्रधान जगह के लिए रंग अलग होगा और महिला प्रधान जगह के लिए अलग। यदि बारिश अधिक होती है तो रंग अलग होंगे यदि कम होती है तो रंग कुछ और होंगे। एक डिस्को थेक के रंग को वह कभी हॉस्पिटल में उपयोग नहीं लेगा।

इंटीरियर डिजाइनिंग का कोई फार्मूला नहीं होता। जैसे गणित में दो और दो चार होता है लेकिन डिजाइन में वो कोई भी रूप ले सकता है।

डिजाइन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने प्रस्तुत किए उजले अवसर : भारत में इंटीरियर को करियर के रूप में देखने में थोड़ा समय लगा। इस कारण से इस क्षेत्र के विशेषज्ञों की संख्या भी कम है। डिजाइन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (डीआईआई) मध्यभारत का पहला सबसे बड़ा इंस्टीट्यूट है जो कि स्थानीय छात्रों को बेहतर अवसर उपलब्ध करा रहा है।

हमारे देश में इंटीरियर पढ़ाने वाले छोटे-मोटे कई इंस्टीट्यूट हैं। लेकिन डीआईआई के साथ इंटीरियर डिजाइनिंग का कोर्स प्रस्तुत करने का कारण ही यही रहा है कि छात्र इस विद्या को बेहतर तरीके से जान सके। संस्थान प्रयास कर रहा है कि इस कला हेतु छात्रों को सर्वश्रेष्ठ मार्गदर्शन मिले और वे अपनी कल्पनाओं को वास्तविक रूप प्रदान कर सके।

विशेषज्ञों के क्षेत्र में अपना विशेष स्थान बना सके। इस हेतु डीआईआई ने देश के सर्वश्रेष्ठ प्रशिक्षकों को अपने साथ जोड़ा है। ताकि यहाँ से निकलने वाला प्रत्येक छात्र देश-विदेश में अपने काम का परचम लहरा सके। साथ ही वर्कशाप्स को अंतरराष्ट्रीय स्तर की मशीन और उत्पादों से सुसज्जित किया गया है ताकि वे बेहतर तरीके से व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त कर सकें। यह एक अनोखा प्रयास है जहाँ डेकोरेटर नहीं डिजाइनर्स तैयार किए जा रहे है।

डीआईआई ने देश-विदेश के कई संस्थानों, विशेषज्ञों और हस्तियों को जोड़ा है ताकि इस क्षेत्र के छात्रों को सर्वश्रेष्ठ रोजगार मिले और साथ ही अपने क्षेत्र का नाम भी रोशन करें।

(लेखक डिजाइन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया, इंदौर के डायरेक्टर है)