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Written By BBC Hindi
Last Modified: मंगलवार, 26 फ़रवरी 2013 (16:51 IST)

वही धमाके, वही कहानी और वही रवैया

- शकील अख्तर (दिल्ली)

वही धमाके, वही कहानी और वही रवैया -
BBC
अतीत की वो भयानक घटनाएं किसी डरावने सपने की तरह जहन के किसी कोने में दब गई थी। लेकिन हैदराबाद के धमाकों ने भारत में एक बार फिर चरमपंथ की तल्ख सच्चाई को सामने ला दिया है।

इधर-उधर बिखरी हुई लाशें, घायलों से भरे हुए अस्पताल, बेबस और लाचार रिश्तेदार जो ये समझ नहीं पा रहे हैं कि आखिर ये हुआ क्या?

हर धमाके के बाद राजनेताओं की तरफ से 'आतंकवाद' की निंदा करते हुए सख्त बयान जारी किए जाते हैं। प्रेस कॉन्फ्रेंस होती है, संसद का सत्र अगर चल रहा हो तो वहां गृहमंत्री का बयान और धमाका बड़ा हो तो प्रधानमंत्री का बयान। और फिर एक लंबी बहस जो हमेशा किसी निर्णायक परिणाम पर पंहुचे बिना पूरी हो जाती है।

हर धमाके के कुछ ही देर बाद इस तरह की खबरें फ्लैश और ब्रेकिंग न्यूज में आने लगती है कि एनएसजी के कमांडो बीएसएफ के हेलीकॉप्टरों के जरिए घटना स्थल पर पंहुच गए, एनआईए की टीम धमाके की जगह पंहुच गई, लेकिन कोई ये जानने की कोशिश नहीं करता कि ये धमाके से पहले कभी क्यों नहीं पंहुचते।

मीडिया की 'तेजी' : चरमपंथ की वारदातों के लिए चरमपंथियों की भी कुछ पसंदीदा जगहें हैं - दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद, जयपुर जैसे शहर।

हर बार ये चरमपंथी सुरक्षा की पूरी तैयारियों और हर तरह के काले, नीले, पीले अलर्ट के बावजूद मासूमों का कत्लेआम करके आसानी से भारतीय सुरक्षा एजेंसियों के चंगुल से भाग निकलते हैं।

भारतीय मीडिया चरमपंथ की जांच में पुलिस और खुफिया सूत्रों से हमेशा आगे रहा है। पुलिस और खुफिया एजेंसी वाले अभी सुराग ही जमा कर रहे होते हैं कि टीवी चैलन तरह तरह की तस्वीरों भी जारी कर देते हैं।

चैनल संगठनों के नाम भी बता देते हैं और कई बार तो पूरी घटना का नाट्य रुपांतरण भी फिल्म की तरह पेश कर देते हैं। हर धमाके के बाद अक्सर ऐसा देखने को मिलता है जो पिछले 15-20 सालों से यूं ही चला आ रहा है।

अब तो लगता है कि पुलिस वाले भी मीडिया को बताकर गिरफ्तारी के लिए निकलते हैं। अकसर ऐसी खबरें टीवी में सुर्खियों में रहती हैं कि एनआईए की टीम 'टॉप चरमपंथी' यासीन भटकल को पकड़ने के लिए बिहार पंहुचने वाली है। इसका मतलब भटकल को अलर्ट करना होता है या जनता को बेवकूफ बनाना, ये समझ में नहीं आता।

गहरी चोट : हैदराबाद के धमाके के बाद इस कहानी में कुछ तब्दीली आई है। टीवी चैनलों पर पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति के उस बयान को बार-बार दिखाया गया है कि जिसमें उन्होंने 11 सितंबर के हमले के बाद चरमपंथियों को उनके ठिकाने पर ही मार देने की बात कही थी।

जानकार अब इस बात पर जोर दे रहे है कि चूंकि उनके अनुसार इन चरमपंथियों का स्थाई ठिकाना पाकिस्तान में है इसलिए भारत को इसराइल और अमेरिका की तर्ज पर दुश्मनों को निशाना बनाकर खत्म कर देना चाहिए।

भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने सरकार से मांग की है कि वो पाकिस्तान से रेल सेवा के साथ-साथ व्यापार और विश्वास बहाली के कदमों पर तुरंत रोक लगाए और पाकिस्तान से अपने राजनयिक संबंध का स्तर घटा ले।

लगता है कि चरमपंथी अपने मकसद में अच्छी तरह कामयाब हो गए हैं। उन्होंने अवाम पर गहरी चोट की है।