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Written By BBC Hindi

खबर लहरिया के लिए यूनेस्को सम्मान

Khabar Laharia | खबर लहरिया के लिए यूनेस्को सम्मान
-विनीत खर
गैर सरकारी संगठन निरंतर को यूनेस्को किंग सेजोंग लिट्रेसी सम्मान 2009 से सम्मानित किया गया है। ये सम्मान इसे अखबार खबर लहरिया के लिए मिला है। अखबार की खास बात ये है कि इसमें काम करने वाली सभी महिलाएँ हैं और वे दलित, आदिवासी और मुस्लिम वर्ग से आती हैं।

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वर्ष 2002 में चित्रकूट में शुरू हुए आठ पन्ने के अखबार खबर लहरिया में महिला रिपोर्टर कहानी सुनाती हैं बदलते समाज की, समाज में फैले भ्रष्टाचार की, पूरे नहीं हुए सरकारी वादों की, गरीबों की और महिलाओं की।

30 वर्षीय कविता चित्रकूट के कुंजनपुर्वा गाँव के एक मध्यमवर्गीय दलित परिवार से आती हैं। बचपन में उनकी पढ़ाई नहीं हुई। 12 वर्ष में उनकी शादी हो गई और चार वर्ष बाद उन्होंने एक गैर सरकारी संगठन की मदद से पढ़ाई शुरू की। उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि वो ‍जिंदगी में कभी पत्रकार बनेंगी।

वर्ष 2002 में उन्होंने गैर सरकारी संगठन निरंतर की ओर से चित्रकूट शहर से शुरू किए गए बुंदेली अखबार 'खबर लहरिया' में पत्रकार के रूप में काम शुरू किया।

जहाँ चाह वहाँ राह : वर्ष 2006 में अखबार बाँदा से भी छपना शुरू हो गया। कविता आज खबर लहरिया की बाँदा संपादक हैं। वे कहती हैं कि इस अखबार ने मेरी जिंदगी बदल दी है। मेरे पिताजी ने बचपन से मुझे पढ़ाया नहीं और कहा कि तुम पढ़कर क्या करोगी, तुम्हे कलेक्टर नहीं बनना है। मैने छुप-छुप कर पढ़ाई की।

पहले था कि मैं किसी की बेटी हूँ या फिर किसी की पत्नी हूँ... आज मेरी खुद की पहचान है और लोग मुझे संपादक के तौर पर जानते हैं। यहाँ ये बताते चलें कि कविता ने पिछले वर्ष ही स्नातक की परीक्षा पास की यानी जहाँ चाह, वहाँ राह।

चित्रकूट से खबर लहरिया की करीब ढाई हजार प्रतियाँ छपती हैं और बाँदा से करीब दो हजार। आँकड़ों के मुताबिक गाँवों में रहने वाले 20000 से ज्यादा लोग इस अखबार को पढ़ते हैं।

चित्रकूट और बाँदा डकैतों के दबदबे वाले क्षेत्र हैं और कविता कहती हैं कि ऐसे इलाकों में दलित, आदिवासी और अल्पसंख्यक वर्ग की महिलाओं के लिए एक पुरुष प्रधान व्यवसाय में काम करना आसान नहीं है।

वे कहती हैं कि हम पर लोगों का काफी दबाव था कि महिलाएँ होकर हमारे खिलाफ छापती हैं। ज्यादातर लोग जो उच्च जाति के लोग थे, वो कहते थे कि आपके अखबार को बंद करवा देंगे। वो कहते थे कि बड़े अखबारों ने हमारे खिलाफ कुछ नहीं निकाला तो फिर आपकी हिम्मत कैसे हुई। शायद इन्हीं दबावों का नतीजा है कि अखबार में बायलाइन नहीं दी जाती। इससे ये पता नहीं चलता कि किसी खबर को किसने लिखा है।

हिम्मत नहीं हारी : परेशानियों के बावजूद ये महिलाएँ डटकर खबर लिखती हैं- चाहे वो दलितों के साथ दुर्व्यवहार का मामला हो, खराब मूलभूत सुविधाएँ हों, नरेगा की जाँच पड़ताल हो, पंचायतों के काम करने के तरीके पर टिप्पणी हो, या फिर सूखे की मार से परेशान किसानों और आम आदमी की समस्या हो, सूखे की वजह से लोगों की पलायन की कहानी हो, या फिर बीमारी से परेशान लोगों के लिए स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी।

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ये महिला पत्रकार हर मुश्किल का सामना कर दूर दराज के क्षेत्रों में जाती हैं, जहाँ बड़े-बड़े अखबारों के संवाददाता नहीं पहुँच पाते। उनके खबर लिखने का अंदाज भी काफी अलग होता है। साथ ही इनका कहना है कि वो अपने अखबार में नकारात्मक खबर ही नहीं, सकारात्मक खबरें भी छापती हैं।

गैर सरकारी संगठन निरंतर की शालिनी जोशी, जो अखबार की प्रकाशक भी हैं, कहती हैं कि जिस तरह ये महिलाएँ खबरें लाती हैं वो कई लोगों को अचंभे में डाल देती हैं।

उनका कहना है कि इन इलाकों में जाति आधारित हिंसा और महिलाओं पर होने वाली हिंसा बहुत है। ऐसी स्थिति में दूरदराज के गाँवों तक जाना, खबरें लेकर आना और अन्य पक्षों से बात करना और फिर उसे लिखना और उस पर टिप्पणी देना, ये इस टीम की खासियत है। अखबार के चित्रकूट संसकरण की संपादक मीरा बताती हैं कि शुरुआत में पुरुष पत्रकारों ने उन्हें पत्रकार मानने से ही इनकार कर दिया था।

वे कहती हैं कि पुरुष पत्रकार कहते थे कि आप कैसे खबर ला सकती हैं या फिर लिख सकती हैं, लेकिन हम अपने काम में लगे रहे। आज वही पत्रकार खबर लहरिया से खबरें लेकर अपने अखबारों में डालते हैं। और वो मानते भी हैं कि खबर लहरिया ही ऐसा अखबार है जहाँ गाँव स्तर तक महिलाएँ जाती हैं और खबरें लाती हैं और उनकी खबरें ठोस होती हैं।

चित्रकूट के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बीबीसी को बताया कि अखबार की पहुँच पूरे जिले में तो नहीं, हाँ कुछ पिछड़े इलाकों के गावों तक है और वहाँ तक अखबार अपनी बातों को पहुँचाने में सफ़ल रहता है।

बाँदा संपादक कविता अखबार की कुछ बड़ी कहनियों के बारे में बताती हैं। वो बताती हैं कि किस तरह चित्रकूट में एक कंपनी जब पहाड़ों पर खुदाई करने पहुँची तो उसकी मिट्टी किसानों के खेतों में जा रही थी और उससे किसान परेशान थे और हमने उस खबर को पहले पन्ने पर छापा। खबर छापने से वहाँ की खुदाई रुकी थी।

कविता कहती हैं कि वो इस अखबार के माध्यम से समाज में बदलाव लाना चाहती हैं। वहीं शालिनी जोशी बताती हैं कि खबर लहरिया अब बिहार में तीन जगहों सीतामढ़ी, गया और शिवहर से जल्दी ही अपनी शुरुआत करने वाला है।