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Written By BBC Hindi

हरियाणा में मिले हड़प्पा के क्षेत्र

hudappa in hariyana | हरियाणा में मिले हड़प्पा के क्षेत्र
हरियाणा के फरमाना गाँव में हड़प्पाकालीन सभ्यता ने नए अवशेष मिले हैं, जिनकी जाँच से हजारों साल पुरानी सभ्यता से जुड़े कई सवालों के जवाब मिल सकते हैं।

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हरियाणा में इससे पहले भी राखीगढ़ी, मीताथल और बनावली में हड़प्पाकालीन स्थल मिले हैं, लेकिन फरमाना में पहली बार हड़प्पा काल के दो अलग-अलग समय के अवशेष एक साथ में मिले हैं।

इतना ही नहीं, फरमाना में पहली बार बड़ी संख्या में कब्रगाहें भी मिली हैं, जो तब के कई रीति-रिवाजों के बारे में जानकारियाँ दे सकती हैं।

फरमाना में खुदाई का काम डेक्कन कॉलेज के पुरातत्वविद् वसंत शिंदे के जिम्मे है। वे इस स्थान पर पिछले तीन वर्षों से खुदाई कर रहे हैं।

दक्षिण एशिया में पाकिस्तान से लेकर भारत तक मिली सिंधु घाटी सभ्यता का नाम हड़प्पा और मोहनजोदड़ो से जुड़ा हुआ है और ये दोनों स्थान पाकिस्तान में हैं।

सिंधु नदी सभ्यता के सबसे महत्वपूर्ण अवशेष यहीं मिले थे। इसका समय 2600 ईसा पूर्व से 1500 ईसा पूर्व तक माना जाता है, लेकिन लिपि अभी तक नहीं पढ़े जाने के कारण इसके बारे में जानकारी काफी कम है।

फरमाना से कुछ दूर खुदाई का काम हुआ है और करीब एक एकड़ क्षेत्र में हड़प्पाकालीन घरों के अवशेष देखे जा सकते हैं। खुदाई के काम में लगे एक छात्र बताते हैं यहाँ आप हड़प्पा स्टाइल के घर देख सकते हैं। सड़कें सीधी और नब्बे डिग्री के कोण पर मुड़ती हैं, जो मोहनजोदड़ों में भी दिखता है। इसके अलावा घरों के दरवाजे पूर्व की तरफ हैं।

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इस खुदाई स्थल पर फिलहाल 27 कमरों की नींव मिली हैं, जिससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि यहाँ कितने लोग रहते होंगे। इन कमरों में रसोई जैसी आकृतियाँ देखी जा सकती हैं, जिनके पास बर्तन के टुकड़े भी पाए गए हैं।

शिंदे फरमाना का महत्व बताते हुए कहते हैं कि इससे हड़प्पा काल के लोगों के बारे में कई तरह की जानकारियाँ मिल सकती हैं। वे कहते हैं यहाँ हमें जो भी घर और सामान मिला है, वह हड़प्पाकालीन अन्य सामानों जैसा है। मुहरें, आभूषण, जेवर और घरों की आकृत्तियाँ हड़प्पा जैसी हैं, इसलिए इसमें कोई शक नहीं है कि यह हड़प्पाकालीन स्थल है।

वे कहते हैं पहली बार हमें एक ही स्थान पर हड़प्पा के अलग-अलग समय के अवशेष मिले हैं, जिससे यह पता चलेगा कि लोगों का जीवन विभिन्न काल में कैसे बदलता रहा। जो कब्रगाहों में नरकंकाल मिले हैं, उससे यह पता लग सकता है कि वे लोग क्या खाते थे, शाकाहारी थे या माँसाहारी। क्या वे बाहर से आए थे या फिर स्थानीय थे, इन सवालों के जवाब डीएनए टेस्ट और अन्य परीक्षणों से पता चल सकते हैं।

शिंदे बताते हैं कि यहाँ मिले सामानों के आधार पर वे तत्कालीन जलवायु के बारे में भी जानकारी जुटाने की कोशिश करेंगे। उनके मुताबिक हड़प्पा या सिंधु नदी सभ्यता कैसे खत्म हुई थी, इसका सही जवाब अभी तक नहीं मिल सका है।

यह कहा जाता है कि जलवायु और संस्कृति का संबंध रहता है। जलवायु का पुनर्निर्माण कर हम यह पता लगा सकते हैं कि इस सभ्यता पर जलवायु का क्या असर रहा होगा। हालाँकि शिंदे की बात से अन्य पुरातत्वविद इत्तेफाक नहीं रखते हैं।

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की पुरातत्वविद की प्रोफेसर सुप्रिया वर्मा कहती हैं कि मैं फरमाना गई हूँ। वहाँ पर काफी सामान हड़प्पा काल का है, यह कहा जा सकता है।

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...लेकिन बर्तनों के कई टुकड़े बाद के समय के हैं और कुछ सामान तो दूसरी या तीसरी सदी का भी है। सुप्रिया जलवायु पुनर्निर्माण की थ्योरी को भी नहीं मानतीं। उनका कहना है किसी नदी के सूख जाने से कोई सभ्यता नहीं खत्म हो जाती है।

वे कहती हैं कि हड़प्पा या कोई भी पुरानी सभ्यता अपने राजनीतिक और सामाजिक मतभेदों के कारण खत्म होती है। किसी नदी के सूख जाने से या अधिक बारिश मात्र होने से सभ्यताएँ खत्म नहीं होतीं।

असल में हड़प्पा की सभ्यता के बारे में दो प्रश्न सबसे अधिक विवादास्पद रहे हैं। एक तो यह सभ्यता खत्म कैसे हुई और दूसरा इस सभ्यता का आर्यों के आगमन से क्या संबंध था।

शिंदे कहते हैं कि इस बारे में अभी भी आँकड़े उपलब्ध नहीं हैं और इस पर और अधिक काम किए जाने की जरूरत है, जिसमें फरमाना से मिली चीजें एक बड़ी भूमिका निभा सकती हैं।

असल में इन प्रश्नों पर इतिहासकारों में बड़ा मतभेद है। जहाँ कुछ इतिहासकार सिंधु घाटी सभ्यता को मिथकीय नदी सरस्वती से जोड़कर देखते हैं, वहीं अन्य इतिहासकार सरस्वती के सूखने और सभ्यता के खत्म होने के सिद्धांत को नहीं मानते हैं।

  जो भी घर और सामान मिला है, वह हड़प्पाकालीन अन्य सामानों जैसा है। मुहरें, आभूषण, जेवर और घरों की आकृत्तियाँ हड़प्पा जैसी हैं, इसलिए इसमें कोई शक नहीं है कि यह हड़प्पाकालीन स्थल है।       
...लेकिन इतना मतभेद क्यों? सुप्रिया कहती हैं पुरातत्व में ये मतभेद हमेशा रहेंगे, क्योंकि जो लिखा जा चुका है, उसमें आप अधिक फेरबदल नहीं कर सकते। लेकिन जो खुदाई में सामान मिलता है, उसका विश्लेषण आप अपने हिसाब से कर सकते हैं। इसमें अपना मत डालने की संभावना बढ़ जाती है।

बहरहाल कुछ लोग इसे ये सरस्वती से जुड़ी सभ्यता बता रहे थे। स्थानीय विधायक ने यहाँ तक कहा कि मानव सभ्यता का उदय इसी स्थान से हुआ है। दूसरे व्यक्ति का कहना था सरस्वती यहीं से बहती थी।

मन में यह भ्रम हुआ कि कहीं पुरातत्व को मिथक से जोड़ने की कोशिश तो नहीं हो रही है। सुप्रिया से जब मैंने यह पूछा तो उनका कहना था कि पुरातत्व और राष्ट्र निर्माण का हमेशा से संबंध रहा है।

आप अपने भविष्य निर्माण के लिए हमेशा से एक महान भूतकाल का हवाला देते हैं और यहीं से मिथकों का बनना शुरू हो जाता है। सरस्वती से सिंधु घाटी सभ्यता को जोड़ने की शुरुआत भी ऐसा ही एक प्रयास है जो सही नहीं है।

इतिहास और पुरातत्व का पुराना रिश्ता रहा है और किसी भी स्थल के बारे में अलग-अलग मत आते रहते हैं और आते ही रहेंगे।

जरूरत है इन प्राचीन स्थलों के असली महत्व को पहचानने की, क्योंकि ये किसी देश या राष्ट्र की धरोहर नहीं है, बल्कि मानव सभ्यता की धरोहर हैं।