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Written By ND

सन्धिवात (गठिया) की चिकित्सा

सन्धिवात (गठिया) की चिकित्सा -
सन्धिवात रोग, जिसे गठिया भी कहते हैं और ऐलोपैथिक भाषा में आर्थ्राइटिस कहते हैं, एक वात व्याधि है, जो कि आमवात रोग की स्थिति ठीक न हो पाने पर, इसके बाद उत्पन्न होने वाली स्थिति होती है।

यानी आमवात की स्थिति ही बढ़कर सन्धिवात व्याधि बन जाती है। गठिया रोग एकदम से नहीं होता। पहले वात प्रकोप के कारण उत्पन्न होने वाले विकार पैदा होते हैं और वात प्रकोपजन्य विकारों के प्रारंभिक लक्षण पैदा होते हैं।

सन्धि का मतलब 'जोड़' या 'जुड़ना' होता है और वात का मतलब शरीर में उपस्थित एक दोष 'वायु' होता है। जब वात कुपित होकर शरीर के जोड़ों को विकारग्रस्त कर देता है, तब इस व्याधि को 'सन्धिवात' कहते हैं। इस रोग में जोड़ों में गांठें बन जाती हैं और शूल चुभने जैसी पीड़ा होती है, इसलिए इस रोग को गठिया भी कहते हैं।

सन्धिवात के लक्षण
हाथ व पैरों की अंगुलियों के जोड़ों, टखनों व घुटनों में सूजन होना, अकड़ आना और सुई चुभने जैसी पीड़ा होना इस रोग के प्रमुख लक्षण हैं। सन्धिवात की स्थिति बिगड़कर असाध्य यानी लाइलाज हो जाती है।

घरेलू चिकित्सा
* लहसुन, गिलोय, देवदारु, सोंठ, एरण्ड की जड़, सब 50-50 ग्राम लेकर जौकुट (मोटा-मोटा) कूट लें। 2 चम्मच चूर्ण एक गिलास पानी में डालकर उबालें। जब पानी आधा कप बचे तब उतारकर छान लें। यह रास्नापंचक क्वाथ (काढ़ा) है। इस विधि से एक बार सुबह और एक बार सोने से पहले काढ़ा बनाकर पिएं।

* लहसुन की छिली हुई कलियां 60 ग्राम और सौचर नमक, सेंधा नमक, जीरा, हींग, पिप्पल, काली मिर्च व सोंठ, सब 2-2 ग्राम लेकर कूट-पीसकर मिला लें और एरण्ड तेल में भूनकर शीशी में भर लें। इस चूर्ण को आधा या एक चम्मच सुबह-शाम पानी के साथ दशमूल काढ़े के साथ फांककर सेवन करें।

* सोंठ और एरण्ड बीज की गिरि 10-10 ग्राम दूध के साथ पीसकर गाढ़ा लेप तैयार करें। दर्द वाले अंगों पर इस लेप को लगाकर सूखने दें और फिर पट्टी बांध दें। इस लेप से दर्द बंद हो जाता है।

आयुर्वेदिक चिकित्सा
* पंचामृत लौह गूगल, रसोनादि गूगल और रास्नाशल्लकी वटी तीनों 1-1 गोली सुबह व रात को सोने से पहले दूध के साथ 2-3 माह तक लेना चाहिए।

* इसी के साथ, भोजन के बाद आधा कप पानी में अश्वगन्धारिष्ट, महारास्नादि काढ़ा और दशमूलारिष्ट तीनों 2-2 चम्मच डालकर दोनों वक्त पिएं।

* महानारायण तेल, महाविषगर्भ तेल, पीड़ा शामक तेल तीनों 50-50 ग्राम लेकर एक बड़ी शीशी में डालकर हलके हाथ से मालिश करें। यह चिकित्सा सन्धिवात रोग को दूर करने में सफल सिद्ध होती है।

सावधानी : सन्धिवात रोग पाचन संस्थान से शुरू होता है, इसलिए सुपाच्य, सादा और ताजा आहार ही लेना चाहिए, जो पूरी तरह पच सके। ऐसे पदार्थों का भूलकर भी सेवन नहीं करना चाहिए, जो पचने में भारी हों, देर से पचते हों और आंव तथा कब्ज पैदा करने वाले हों।

* दर्द दूर करने के लिए 'भाप सेंक विधि' से जोड़ों को सेंकना चाहिए। एक तपेली में एक लीटर पानी डालकर इसमें एक मुट्ठीभर अजवायन और 10 ग्राम नमक डाल दें और आग पर उबलने के लिए रख दें। जब भाप उठने लगे, तब तपेली पर तार की जाली रख दें। दो नैपकिन लेकर पानी में गीले करके निचोड़ लें। इन कपड़ों को चार तह करके जाली पर रख दें। यह भाप लगने से गर्म हो जाए तब इसे उठाकर दूसरा कपड़ा या नैपकिन गर्म होने के लिए रख दें। गर्म किए गए पहले कपड़े को दर्द वाले अंग पर रखकर बारी-बारी से गर्म करते रहें यानी एक कपड़े से सेंक करें और दूसरा कपड़ा गर्म होने के लिए जाली पर रख दें।

प्रतिदिन 15-20 मिनट तक ऐसा करने से तुरंत राहत तो मिलती ही है, धीरे-धीरे दर्द होना बंद हो जाता है। घुटनों, टखनों, हथेलियों, तलुओं, कमर व पीठ में होने वाले हड्डी के जोड़ों के दर्द को दूर करने के लिए यह उपाय निरापद और तत्काल असर करने वाला है।