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Written By WD

मुंडे की मौत और मारुति एसएक्स-4

- आदित्य

Maruti sx4 and Munde's accident | मुंडे की मौत और मारुति एसएक्स-4

मुंडे की मौत के बाद मारुति SX-4 पर सवाल

कुछ प्रतिशत कीमतें बढ़ जाने के खतरे के बावजूद यह तय हो ही रहा था कि वाहनों में सुरक्षा का स्तर बढ़ाया जाए। इसमें 'कोलाइजन टेस्ट' से लेकर मैन्युफैक्चरिंग में कड़ाई बरतने जैसे बिंदु शामिल हैं। दूसरी तरफ भारत के एक बड़े व्हीकल मैन्युफैक्चरर ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर कहा कि वो 'स्वदेशी' सवारी में ही सफर जारी रखें, बजाए उन जर्मन कारों के, जो इनसे पच्चीस गुना से भी ज्यादा महंगी है।

PTI


ये सब चल ही रहा था कि केंद्र के मंत्री गोपीनाथ मुंडे की मौत ने 'अपेक्षाकृत' सुरक्षित मारुति एसएक्स-4 पर सवाल खड़े कर दिए। दरअसल एसएक्स-4 में मारु‍ति ने 'ईको, ओमनी, ऑल्टो और‍ स्विफ्ट' से कहीं ज्यादा सेफ्टी फीचर्स डाले हैं या कम से कम कंपनी का दावा तो यही है।

यदि एक केंद्रीय मंत्री को उपलब्ध कराई गई अधिक सुरक्षा फीचर वाली कार अपने बेशकीमती सवार की जान नहीं बचा सकती तो आप बाकी 'औसत' कारों से क्या और कितनी उम्मीद कर सकते हैं?

हकीकत तो ये है कि हमारी औसत कारें कड़े मानकों वाले यूरोपियन क्षेत्रों और देशों के लिहाज से तो पिछड़ी हुई हैं ही, भारत में लागू मानकों से भी समझौता करती हैं।

ऐसा नहीं कि हमारे मैन्युफैक्चरर इन सब तथ्यों से अनजान हों, लैंडरोवर और जगुआर जैसी गाड़ियां टाटा मोटर्स के बैनर तले बनती हैं तो एम एंड एम ने रेनो का साथ काफी समय निभाया है और अब सेंगयांग जैसे बड़े निर्माता से उनका कुछ मामलों में गठजोड़ है।

कमोबेश सभी कंपनियां इस मामले में भारत की 'उदारता' का फायदा उठाती हैं जबकि दूसरे देशों में यही कंपनियां कड़े मानक मानती हैं। इन कंपनियों को कुछ समय के लिए जरूर महसूस होता है कि सेफ्टी फीचर्स पर पर्याप्त ध्यान न देने से उन्हें भारी बचत हो रही है। लेकिन हकीकत ठीक उलट है।

इन समझौता करने वाली कं‍पनियों पर से ग्राहकों का भरोसा उठता जा रहा है। खासतौर पर ऐसी कंपनियां जब प्रीमियम सेगमेंट में गाड़ियां उतारती हैं तो उनकी तरफ ग्राहक देखना तक पसंद नहीं करते।

मारुति के साथ जुड़े नाम वाली सुजुकी ने अब तक कई बार कोशिश की कि वह 15 से 25 लाख वाले सेगमेंट में ही कुछ कर ले, लेकिन इस रेंज वाले ग्राहक मर्सिडीज और बीएमडब्ल्यू के बेसिक मॉडल लेना पसंद करते हैं और ग्रांड विटारा विकल्प में भी नहीं रखी जाती है।

इस तथ्य को या तो कंपनियां छोटे फायदों के लिए नजरअंदाज करती हैं या उन्हें मर्सिडीज बेंज जैसे किसी बड़े झटके का इंतजार है, क्योंकि जब प्रिंसेडायना और डोडी की मौत हुई थी, तो मर्क के सेफ्टी फीचर्स पर इतने सवाल उठे थे कि सीधा असर बिक्री पर दिखने लगा था। बमुश्किल कंपनी अपनी सुरक्षा साख को ट्रैक पर ला पाई।

मुंडे का तो देहांत हो गया, लेकिन अब इस मसले पर ज्यादा ध्यान देना जरूरी है कि आखिर क्यों हमारी कंपनियां सुरक्षा को लेकर इतनी लापरवाह हैं? क्या आधुनिकतम तकनीक इतना भी नहीं कर सकतीं कि वाहन के टकराने का मतलब सीधे सवार की जान पर खतरे से न जा जुड़े।

कहने को सेंसर्स और एयरबैग्स ही नहीं, दूसरे फीचर्स ने जान बचाने की राहें खोल दी हैं, लेकिन 'बेसिक' तौर पर जब ये जान न बचा पाएं तो इनका कोई अर्थ नहीं रह जाता है।