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Written By WD

तंत्र से लक्ष्मी प्राप्ति के प्रयोग

तंत्र से लक्ष्मी प्राप्ति के प्रयोग -
मार्जारी तंत्र : मार्जारी अर्थात्‌ बिल्ली सिंह परिवार का जीव है। केवल आकार का अंतर इसे सिंह से पृथक करता है, अन्यथा यह सर्वांग में, सिंह का लघु संस्करण ही है। मार्जारी अर्थात्‌ बिल्ली की दो श्रेणियाँ होती हैं- पालतू और जंगली। जंगली को वन बिलाव कहते हैं। यह आकार में बड़ा होता है, जबकि घरों में घूमने वाली बिल्लियाँ छोटी होती हैं। वन बिलाव को पालतू नहीं बनाया जा सकता, किन्तु घरों में घूमने वाली बिल्लियाँ पातलू हो जाती हैं। अधिकतर यह काले रंग की होती हैं, किन्तु सफेद, चितकबरी और लाल (नारंगी) रंग की बिल्लियाँ भी देखी जाती हैं।

अस्तु, घरों में घूमने वाली बिल्ली (मादा) भी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त कराने में सहायक होती है, किन्तु यह तंत्र प्रयोग दुर्लभ और अज्ञात होने के कारण सर्वसाधारण के लिए लाभकारी नहीं हो पाता। वैसे यदि कोई व्यक्ति इस मार्जारी यंत्र का प्रयोग करे तो निश्चित रूप से वह लाभान्वित हो सकता है।

गाय, भैंस, बकरी की तरह लगभग सभी चौपाए मादा पशुओं के पेट से प्रसव के पश्चात्‌ एक झिल्ली जैसी वस्तु निकलती है। वस्तुतः इसी झिल्ली में गर्भस्थ बच्चा रहता है। बच्चे के जन्म के समय वह भी बच्चे के साथ बाहर आ जाती है। यह पॉलिथीन की थैली की तरह पारदर्शी लिजलिजी, रक्त और पानी के मिश्रण से तर और देखने में घृणित होती है। सामान्यतः इसे नाल कहते हैं।

इस नाल को तांत्रिक साधना में बहुत महत्व प्राप्त है। स्त्री की नाल का उपयोग वन्ध्या अथवा मृतवत्सा स्त्रियों के लिए परम हितकर माना गया है। वैसे अन्य पशुओं की नाल के भी विविध उपयोग होते हैं। यहाँ केवल मार्जारी (बिल्ली) की नाल का ही तांत्रिक प्रयोग लिखा जा रहा है, जिसे सुलभ हो, इसका प्रयोग करके लक्ष्मी की कृपा प्राप्त कर सकता है।

जब पालतू बिल्ली का प्रसव काल निकट हो, उसके लिए रहने और खाने की ऐसी व्यवस्था करें कि वह आपके कमरे में ही रहे। यह कुछ कठिन कार्य नहीं है, प्रेमपूर्वक पाली गई बिल्लियाँ तो कुर्सी, बिस्तर और गोद तक में बराबर मालिक के पास बैठी रहती हैं। उस पर बराबर निगाह रखें। जिस समय वह बच्चों को जन्म दे रही हो, सावधानी से उसकी रखवाली करें। बच्चों के जन्म के तुरंत बाद ही उसके पेट से नाल (झिल्ली) निकलती है और स्वभावतः तुरंत ही बिल्ली उसे खा जाती है। बहुत कम लोग ही उसे प्राप्त कर पाते हैं।

अतः उपाय यह है कि जैसे ही बिल्ली के पेट से नाल बाहर आए, उस पर कपड़ा ढँक दें। ढँक जाने पर बिल्ली उसे तुरंत खा नहीं सकेगी। चूँकि प्रसव पीड़ा के कारण वह कुछ शिथिल भी रहती है, इसलिए तेजी से झपट नहीं सकती। जैसे भी हो, प्रसव के बाद उसकी नाल उठा लेनी चाहिए। फिर उसे धूप में सुखाकर प्रयोजनीय रूप दिया जाता है।

धूप में सुखाते समय भी उसकी रखवाली में सतर्कता आवश्यक है। अन्यता कौआ, चील, कुत्ता आदि कोई भी उसे उठाकर ले जा सकता है। तेज धूप में दो-तीन दिनों तक रखने से वह चमड़े की तरह सूख जाएगी। सूख जाने पर उसके चौकोर टुकड़े (दो या तीन वर्ग इंच के या जैसे भी सुविधा हो) कर लें और उन पर हल्दी लगाकर रख दें। हल्दी का चूर्ण अथवा लेप कुछ भी लगाया जा सकता है। इस प्रकार हल्दी लगाया हुआ बिल्ली की नाल का टुकड़ा लक्ष्मी यंत्र का अचूक घटक होता है।

तंत्र साधना के लिए किसी शुभ मुहूर्त में स्नान-पूजा करके शुद्ध स्थान पर बैठ जाएँ और हल्दी लगा हुआ नाल का सीधा टुकड़ा बाएँ हाथ में लेकर मुट्ठी बंद कर लें और लक्ष्मी, रुपया, सोना, चाँदी अथवा किसी आभूषण का ध्यान करते हुए 54 बार यह मंत्र पढ़ें- 'मर्जबान उल किस्ता'

इसके पश्चात्‌ उसे माथे से लगाकर अपने संदूक, पिटारी, बैग या जहाँ भी रुपए-पैसे या जेवर हों, रख दें। कुछ ही समय बाद आश्चर्यजनक रूप से श्री-सम्पत्ति की वृद्धि होने लगती है। इस नाल यंत्र का प्रभाव विशेष रूप से धातु लाभ (सोना-चाँदी की प्राप्ति) कराता है।

दूर्वा तंत्र : दूर्वा अर्थात्‌ दूब एक विशेष प्रकार की घास है। आयुर्वेद, तंत्र और अध्यात्म में इसकी बड़ी महिमा बताई गई है। देव पूजा में भी इसका प्रयोग अनिवार्य रूप से होता है। गणेशजी को यह बहुत प्रिय है। साधक किसी दिन शुभ मुहूर्त में गणेशजी की पूजा प्रारंभ करे और प्रतिदिन चंदन, पुष्प आदि के साथ प्रतिमा पर 108 दूर्वादल (दूब के टुकड़े) अर्पित करे। धूप-दीप के बाद गुड़ और गिरि का नैवेद्य चढ़ाना चाहिए। इस प्रकार प्रतिदिन दूर्वार्पण करने से गणेशजी की कृपा प्राप्त हो सकती है। ऐसा साधक जब कभी द्रव्योपार्जन के कार्य से कहीं जा रहा हो तो उसे चाहिए कि गणेश प्रतिमा पर अर्पित दूर्वादलों में से 5-7 दल प्रसाद स्वरूप लेकर जेब में रख ले। यह दूर्वा तंत्र कार्यसिद्धि की अद्‍भुत कुंजी है।

अश्व नाल तंत्र : नाखून और तलवे की रक्षा के लिए लोग प्रायः घोड़े के पैर में लोहे की नाल जड़वा देते हैं, क्योंकि उन्हें प्रतिदिन पक्की सड़कों पर दौड़ना पड़ता है। यह नाल भी बहुत प्रभावी होती है। दारिद्रय निवारण के लिए इसका प्रयोग अनेक प्राचीन ग्रंथों में वर्णित है।

घोड़े की नाल तभी प्रयोजनीय होती है, जब वह अपने आप घोड़े के पैर से उखड़कर गिरी हो और शनिवार के दिन किसी को प्राप्त हो। अन्य दिनों में मिली नाल प्रभावहीन मानी जाती है। शनिवार को अपने आप, राह चलते कहीं ऐसी नाल दिख जाए, भले ही वह घोड़े के पैर से कभी भी गिरी हो उसे प्रणाम करके 'ॐ श्री शनिदेवाय नमः' का उच्चारण करते हुए उठा लेना चाहिए।

शनिवार को इस प्रकार प्राप्त नाल लाकर घर में न रखें, उसे बाहर ही कहीं सुरक्षित छिपा दें। दूसरे दिन रविवार को उसे लाकर सुनार के पास जाएँ और उसमें से एक टुकड़ा कटवाकर उसमें थोड़ा सा तांबा मिलवा दें। ऐसी मिश्रित धातु (लौह-ताम्र) की अंगूठी बनवाएँ और उस पर नगीने के स्थान पर 'शिवमस्तु' अंकित करा लें। इसके पश्चात्‌ उसे घर लाकर देव प्रतिमा की भाँति पूजें और पूजा की अलमारी में आसन पर प्रतिष्ठित कर दें। आसन का वस्त्र नीला होना चाहिए।

एक सप्ताह बाद अगले शनिवार को शनिदेव का व्रत रखें। सन्ध्या समय पीपल के वृक्ष के नीचे शनिदेव की पूजा करें और तेल का दीपक जलाकर, शनि मंत्र 'ॐ शं शनैश्चराय नमः' का जाप करें। एक माला जाप पश्चात्‌ पुनः अंगूठी को उठाएऔर 7 बार यही मंत्र पढ़ते हुए पीपल की जड़ से स्पर्श कराकर उसे पहन लें। यह अंगूठी बीच की या बगल की (मध्यमा अथवा अनामिका) उँगली में पहननी चाहिए। उस दिन केवल एक बार संध्या को पूजनोपरांत भोजन करें और संभव हो तो प्रति शनिवार को व्रत रखकर पीपल के वृक्ष के नीचे शनिदेव की पूजा करते रहें। कम से कम सात शनिवारों तक ऐसा कर लिया जाए तो विशेष लाभ होता है। ऐसे व्यक्ति को यथासंभव नीले रंग के वस्त्र पहनने चाहिए और कुछ न हो सके तो नीला रूमाल य अंगोछा ही पास में रखा जा सकता है।

इस अश्व नाल से बनी मुद्रिका को साक्षात्‌ शनिदेव की कृपा के रूप में समझना चाहिए। इसके धारक को बहुत थोड़े समय में ही धन-धान्य की सम्पन्नता प्राप्त हो जाती है। दरिद्रता का निवारण करके घर में वैभव-सम्पत्ति का संग्रह करने में यह अंगूठी चमत्कारिक प्रभाव दिखलाती है।

नोट :- तांत्रिक साधना का मूल उद्देश्य सिद्धि से साक्षात्कार करना है। यह एक अत्यंत ही रहस्यमय शास्त्र है। चूँकि इस शास्त्र की वैधता विवादित है अतः हमारे द्वारा दी जा रही सामग्री के आधार पर किसी भी प्रकार के प्रयोग करने से पूर्व किसी योग्य तांत्रिक की सलाह अवश्य लें। अन्यथा किसी भी प्रकार के लाभ-हानि की जिम्मेदारी आपकी होगी।