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Written By ND
Last Modified: बुधवार, 28 नवंबर 2007 (16:17 IST)

खरपतवारों पर नियंत्रण न किया तो गन्ने की पैदावार में कमी

खरपतवारों पर नियंत्रण न किया तो गन्ने की पैदावार में कमी -
गन्ना एक बहुवर्षीय फसल है, जो शरद (अक्टूबर), बसंत (फरवरी-मार्च) तथा अधसाली (जुलाई) में बोई जाती है। अधसाली गन्नों की बुवाई मुख्यतः महाराष्ट्र में की जाती है, जबकि भारत में ज्यादातर बुवाई बसंत ऋतु (फरवरी-मार्च) में की जाती है। इसकी बुवाई 75-90 सेमी की दूरी पर कतारों में की जाती है। बुवाई के लगभग 3-4 सप्ताह बाद गन्ना उगता है। पंक्तियों के बीच पर्याप्त दूरी एवं धीमी प्रारंभिक बढ़वार खरपतवारों को बढ़ने या फैलने में अत्यधिक सहायक होती है। यदि इनका समय पर नियंत्रण न किया गया तो गन्नों की पैदावार एवं गुणवत्ता में कमी आती है।

रोकथाम का समय : गन्नों में खरपतवारों की मुख्य समस्या बोने से लेकर मानसून शुरू होने तक रहती है। इस समय पौधे छोटे होते हैं तथा खरपतवारों से मुकाबला नहीं कर पाते हैं। अतः गन्नों की फसल को शुरू से खरपतवार रहित रखना आवश्यक होता है, लेकिन यह आर्थिक दृष्टि से लाभदायक नहीं होता इसलिए खरपतवार प्रतिस्पर्धा की क्रांतिक अवस्था में इनकी रोकथाम जरूरी होती है। गन्नों में यह अवस्था बुवाई के 40-70 दिन के बीच होती है।

नियंत्रण के उपाय : गन्ने की फसल में खरपतवार नियंत्रण की विधियाँ निम्न हैं-
यांत्रिक विधि : खरपतवारों को खुरपी अथवा कुदाली से नष्ट किया जा सकता है। फसल बोने से पूर्व की जुताई भी खरपतवारों की संख्या में कमी लाती है, चूँकि गन्ने की फसल का जमाव बुवाई के 25-30 दिन बाद होता है, तब तक खरपतवार काफी संख्या में उग आते हैं। इसलिए फसल बोने के एक सप्ताह बाद गुड़ाई करने से खरपतवारों को नष्ट किया जा सकता है। इसे अंधी गुड़ाई कहते हैं। इसके अलावा बैलों द्वारा चलाए जाने वाले कल्टीवेटर से गन्नों की पंक्तियों का प्रभावी नियंत्रण किया जा सकता है।

ट्रेश मल्चिंग : गन्नों की पंक्तियों के बाकी खाली स्थान में गन्नों की सूखी पत्तियाँ या पुवाल की 7-12 सेमी मोटी तह इस प्रकार से बिछा दी जाए कि गन्नों का अंकुर न ढँकने पाए तथा केवल खाली स्थान ही ढँका रहे। ऐसा करने से खरपतवार ढँक जाते हैं तथा प्रकाश न मिलने के कारण पीले पड़कर सूख जाते हैं। इससे खेत में नमी भी सुरक्षित बनी रहती है।

खरपतवारों से हानिया
गन्ने की फसल में खरपतवार फसल की तुलना में 5.8 गुना नाइट्रोजन, 7.8 गुना फास्फोरस एवं तीन गुना पोटाश उपयोग करते हैं। साथ ही नमी का एक बड़ा हिस्सा शोषित कर लेते हैं तथा फसल को आवश्यक प्रकाश एवं स्थान से भी वंचित रखते हैं। इसके अतिरिक्त फसलों में लगने वाले कीटों एवं रोगों के जीवाणुओं को भी आश्रय देते हैं। खरपतवारों की संख्या एवं प्रजाति के अनुसार गन्नों की पैदावार में 14 से 75 प्रश तक की कमी आँकी गई है। शकर की मात्रा एवं गुणवत्ता में भी कमी आती है। (नईदुनिया)