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आमिर खान : छोटे कद का बड़ा सिकंदर

आमिर खान : छोटे कद का बड़ा सिकंदर - आमिर खान : छोटे कद का बड़ा सिकंदर
फिल्मी दुनिया में आजादी के पहले फिल्म कंपनी या स्टूडियो अथवा बैनर सिस्टम प्रचलित थे। इन कंपनियों या स्टूडियो में फिल्म कलाकार मासिक वेतन पर नौकरी करते थे। कंपनी के कठोर अनुशासन में उन्हें काम करना होता था। कई बार अधिक वेतन के लालच में वे इधर से उधर कंपनी बदल लिया करते थे। आजादी के बाद हॉलीवुड पैटर्न पर बॉलीवुड में भी स्टार सिस्टम आरंभ हुआ। अब कलाकार स्वतंत्र होकर अनुबंध के आधार पर फिल्में करने लगे। इससे इनके भाव बढ़े और साथ में फिल्मों की लागत भी बढ़ती चली गई।

आमिर खान का बॉलीवुड में आगमन 1986 से हुआ। नब्बे के इस दशक में जमीन के कलाकार आसमान के सितारे बन गए। पूरी इंडस्ट्री सितारों के नाज-नखरों को सहन करती और उनके इशारों पर नाचने लगी थी। 1988 में आमिर खान को सितारा हैसियत दिलाने वाली पहली फिल्म आई 'कयामत से कयामत तक' लेकिन इससे भी पहले आमिर का रिश्ता फिल्मी दुनिया से जुड़ गया था।

कक्षा 12वीं तक की पढ़ाई करने के बाद आमिर चाहते थे कि वे पुणे के फिल्म इंस्टीट्‍यूट से बाकायदा प्रशि‍क्षण प्राप्त करें और फिर अपनी किस्मत आजमाएँ। पिता ताहिर हुसैन ने सलाह दी कि पुणे जाने की जरूरत क्या है, जब चाचा नासिर हुसैन की फिल्म कंपनी घर में ही है। आमिर ने सहायक निर्देशक के रूप में उनके साथ काम शुरू किया।

आमिर खान का फिल्मी करियर नासिर हुसैन की फिल्म 'यादों की बारात' से शुरू होता है। इसमें उन्होंने बाल कलाकार की भूमिका निभाई थी। इसके बाद केतन मेहता की कम प्रतिष्ठित फिल्म होली में उन्होंने किट्‍टू गिडवानी के बेचैन बॉय फ्रेंड की भूमिका की। लेकिन चॉकलेटी हीरो के रूप में उन्हें प्रसिद्धि मिली चचेरे भाई मंसूर खान की फिल्म कयामत से कयामत तक से। इस फिल्म की सफलता के बाद आमिर को जो ऑफर मिले वे स्वीकार कर लिए। फिल्म राख/लव-लव-लव और अफसाना प्यार का तीनों फिल्में बॉक्स ऑफिस पर लुढ़क गईं।

यहीं से आमिर को सीख मिली कि एक साथ कई फिल्में करने से लंबी रेस का घोड़ा नहीं बना जा सकता। उन्होंने अपने को आत्मसंयमित किया, अनुशासित किया और दिलीप कुमार का अनुसरण करने का निश्चय किया कि एक बार में एक फिल्म के फार्मूले पर वे चलेंगे। इस बार फिर चचेरे भाई मंसूर खान उन्हें उबारने आगे आए। फिल्म जो जीता वही सिकंदर ने आमिर को सचमुच में सिकंदर बना दिया। इस फिल्म में उन्होंने एक स्कूली छा‍त्र का रोल किया था, जो जवाबदारी, आत्मसम्मान और प्रेम से परिचय प्राप्त करता है।

इस फिल्म ने यह स्थापित किया कि आमिर एक प्रतिभावान अभिनेता हैं। इस फिल्म के ठीक बाद इंद्रकुमार की फिल्म 'दिल' की सफलता ने आमिर को बहुत आगे ले जाकर खड़ा कर दिया। इस फिल्म की नायिका माधुरी दीक्षित थीं।

टिकट खिड़की पर चमत्कार की तरह आमिर खान फिल्माकाश के जगमगाते सितारे बने। इससे उनका सिर भी कुछ समय के लिए घूम गया। महेश भट्‍ट की फिल्म दिल है कि मानता नहीं कि शूटिंग के दौरान उनके नखरे बढ़ गए। उन्होंने अपने लिए विशेष प्रकार के शर्ट और केप माँगी और जिद पर अड़ गए। यह देख महेश भट्‍ट और फिल्म यूनिट को लगा कि उन्हें दीवार के सहारे खड़ा कर दिया गया है।

फिल्म 'साजन' और 'डर' के ऑफर उन तक आए तो उन्होंने साफ मना कर दिया जबकि ये दोनों फिल्में संजय दत्त और शाहरुख खान के लिए मुनाफे का सौदा साबित हुईं। इसे लेकर इंडस्ट्री में आमिर की आलोचना भी हुई कि सफलता के नशे में वे जमीन से ढाई इंच ऊपर चलने लगे हैं।

हम हैं राही प्यार के फिल्म फिर से सुपरहिट साबित हुई और आलोचकों के मुँह बंद हो गए। आमिर-जूही की जोड़ी फिल्मों में साथ आई और बॉक्स ऑफिस पर सफल रही। क्रॉपथ्रिलर फिल्म 'बाजी' में आमिर का कठोर परिश्रम स्पष्ट देखा जा सकता है। 'अकेले हम अकेले तुम' में शादी का टूटना दर्शकों को रास नहीं आया और फिल्म फ्‍लॉप हो गई।

इसके बाद 'रंगीला' और 'राजा हिन्दुस्तानी' ने आमिर के करियर को उछाल दी। रंगीला में टपोरी के रोल में आमिर को दर्शकों ने बेहद पसंद किया। दोनों फिल्मों में एक दिशा में बढ़ने वाले सहज किरदार थे, जिसे आमिर ने बेहतर ढंग से प्रस्तुत कर दर्शकों का दिल जीत लिया। इन फिल्मों से आमिर का फिल्मी दुनिया में यह रुतबा बन गया कि वे अकेले बॉक्स ऑफिस पर भीड़ जुटा सकते हैं।

अब आमिर की इमेज 'क्यूट' से 'माचो हीरो' की बन गई। गुलाम की सफलता और 'आती क्या खंडाला' जैसे गीत के टुकड़े ने देशभर में बवंडर पैदा कर दिया। इससे आमिर का कद लार्जर देन लाइफ हो गया और रानी मुखर्जी जैसी तारिका चल पड़ीं।

दीपा मेहता की फिल्म 1947 : द अर्थ में आमिर अलग रूप में नजर आए। ‍नंदिता दास के साथ उनकी जोड़ी जमी। नंदिता को आमिर इंटीलेक्चुअल हीरोइन मानते हैं और जब कभी दिल्ली जाते हैं, उनसे मिलते जरूर हैं। फिल्म 'मन' (मनीषा कोइराला), 'रिश्ता' (अमिताभ-माधुरी) और 'मेला' (ट्‍विंकल खन्ना) फ्लॉप रहीं। इन्होंने आमिर की सफलता के ग्राफ को नीचे की ओर उतारा।

लेकिन जॉन मैथ्‍यू मथान की फिल्म 'सरफरोश' में वे एक ईमानदार-कर्त्तव्यनिष्ठ पुलिस इंस्पेक्टर के रोल में 'फीनिक्स' की तरह उभरकर आए। इसके बाद की कहानी 'लगान' की है जो आमिर का होम प्रोडक्शन बनकर ऑस्कर तक का सुनहरा सफर है।

लगान के बाद दोस्ती निभाने के लिए आमिर ने फरहान अख्तर की फिल्म 'दिल चाहता है' एकदम नए लुक और गेटअप के साथ कर अपनी प्रतिभा की धाक जमाई। रंग दे बसंती, फना, तारे जमीं पर, गजनी, 3 इडियट्स,  पीके और दंगल जैसी फिल्मों ने आमिर के कद को और ऊंचा कर दिया।
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