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Written By WD

वर्ष 2014 : इबोला बनी विश्व की जानलेवा महामारी

वर्ष 2014 : इबोला बनी विश्व की जानलेवा महामारी - वर्ष 2014 : इबोला बनी विश्व की जानलेवा महामारी
वर्ष 2014 में जिस बीमारी ने विश्व स्तर पर सबसे ज्यादा हैरान किया वह है इबोला। इबोला वायरस बीमारी {Ebola Virus Disease (EVD)} और इबोला रक्तस्त्रावी बुखार {Ebola Hemorrhagic Fever (EHF)} जैसे नामों के साथ वैश्विक स्तर पर बड़ा खतरा बन चुकी इबोला इंसानों और अन्य स्तनपायी जीवों जैसे कि बंदरों और लंगूरों को अपना शिकार बनाती है। पूरे विश्व में महामारी का रुप ले चुकी यह बीमारी इबोला नाम के वायरस के कारण होती है। 


 
किसी भी व्यक्ति द्वारा इस बीमारी के वायरस के संपर्क में आने के बाद इसके लक्षण दो दिनों से लेकर तीन हफ्तों के भीतर सामने आने लगते हैं जिनमें बुखार, गले में सूजन और दर्द के साथ खराश,मांसपेशियों में दर्द, सिर में दर्द, उल्टियां और डायरिया शामिल हैं। इबोला में लीवर और गुर्दों के काम करने की क्षमता भी कम हो जाती है। इसके संपर्क में आ जाने पर कुछ मरीजों में शरीर के अंदर और बाहर रक्त निकलने लगता है। 
 
इस बीमारी के मरीजो में मौत का खतरा बहुत अधिक रहता है और करीब 25 प्रतिशत से 90 प्रतिशत तक मरीजों की जान चली जाती है। मरीजों की मौत का मुख्य कारण रक्तचाप में अत्यधिक गिरावट होती है जो इस बीमारी के लक्षणों के सामने आने के 6 से 16 दिनों के अंदर होने लगती है। 
 
 

इबोला वायरस रक्त या शरीर में मौजूद अन्य किसी प्रकार के तरल पदार्थ के संपर्क में आने से फैलता है। इबोला के वायरस से इंफेक्शन में आने की संभावना किसी ऐसी वस्तु या स्थान के संपर्क में आने पर भी बनी रहती है जहां पर इस वायरस का प्रभाव बिल्कुल ताजा हो। इस वायरस के हवा के द्वारा फैलने के कोई भी प्रमाण अभी तक नहीं मिले हैं। 


 
इस बीमारी के वायरस वीर्य {(semen) white discharge from genitals} के अलावा मां के दूध से भी फैल सकते हैं। एक विशेष प्रकार के चमगादड़ (fruit bats) को इस वायरस को विभिन्न जगहों तक फैलाने के लिए जिम्मेदार समझा जाता है। इन चमगादड़ों पर इस वायरस का कोई प्रभाव नही पड़ता है। 
 
इंसान इस वायरस से प्रभावित किसी जीवित या मरे हुए जानवर के संपर्क में आकर इस बीमारी को ग्रहण कर लेते हैं। जब यह बीमारी किसी इंसान के शरीर में आ जाती है तो फिर और लोगों में इसका संक्रमण बड़ी तेजी से होता है। इसके लक्षण अन्य कई बीमारियों जैसे कि मलेरिया, कालरा, टाइफॉइड, बुखार, और मेनिइंजाइटिस के लक्षणों के समान होते हैं और इसका पता लगाने के लिए रक्त की जांच RNA वायरल, एंटीबॉडीज वायरल या फिर इबोला के वायरस के लिए की जाती है।  
 
 

इस बीमारी के फैलने पर इलाज के समय आपसी सहयोग के साथ साथ सामाजिक जुडाव की भी जरुरत होती है। प्रभावी इलाज के लिए जल्दी से इस बीमारी पता लगना जरूरी है, जिस मरीज में इस बीमारी का पता लगे उसके संपर्क में आने वाले अन्य व्यक्तियों की जांच तुरंत होनी चाहिए। रक्त के नमूने का प्रयोगशाला में तुरंत पहुंचना बेहद आवश्यक है। जिन मरीजों में यह बीमारी पता लग जाती है उनका सही इलाज और जिन व्यक्तियों की इस बीमारी से मौत हो गई हो उनका सही तरीके से अंतिम संस्कार बेहद जरुरी है। 


 
इसे रोकने के प्रभावी तरीके अपनाकर इसके प्रसार और संक्रमण को रोका जा सकता है। इसमें सही और सुरक्षित कपड़ों के चुनाव के अलावा हाथों को बार बार धोना भी शामिल है। 
 
किसी भी प्रकार का खास इलाज और टीका इस वायरस के लिए अब तक खोजा नही जा सका है हालांकि कई प्रकार के संभावित इलाजों पर अध्ययन जारी हैं। जो लोग इस बीमारी की चपेट में आ चुके हैं उनकी मदद के प्रयासो में 'ओरल रिहाइड्रेशन थेरेपी' जिसमें थोड़ा मीठा और थोड़ा नमकीन पानी पिलाने के अलावा लक्षणों का इलाज शामिल है। 
 
इबोला वायरल डिसीज का सबसे पहले पता सूडान और जाइरा (अब डेमोक्रेटिक रिपब्लिक कांगो) में 1976 में चला था। इस बीमारी का प्रकोप सबसे ज्यादा  सहारा अफ्रीका में पड़ा। अभी इस बीमारी का सबसे ज्यादा प्रकोप पश्चिमी अफ्रीका के गुएना, सिएरा लियोने और लाइबेरिया में है।

10 दिसंबर 2014 को जारी की गई रिपोर्ट के अनुसार में कुल 18,232 मरीजों में से 6,990 लोग मर चुके हैं।