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Written By समय ताम्रकर

वर्ष 2007 : अक्षय कुमार और शाहरुख ने जीती बाजी

वर्ष 2007 : अक्षय कुमार और शाहरुख ने जीती बाजी -
वर्ष 2007 बिदा ले रहा हैं। करोड़ों रुपए लेकर काम करने वाले प्रमुख नायकों की क्या स्थिति है, आइए डाले एक नजर :

अक्षय कुमार (नमस्ते लंदन, हे बेबी, भूलभुलैया)
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अक्षय की तीन फिल्में प्रदर्शित हुईं और तीनों हिट रहीं। ‘वेलकम’ आने वाली है। अक्षय कहते हैं कि वे किसी खान से कम नहीं है। हँसी मत उड़ाइए। अक्षय की बात में वजन है। लगातार सफल फिल्म देना मामूली बात नहीं है। अक्षय के चाहने वालों की संख्या में इस वर्ष जबरदस्त इजाफा हुआ है।

शाहरुख खान (चक दे इंडिया, ओम शांति ओम)
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किंग खान की फिल्मों ने भी सफलता का डंका बजाया। ‘चक दे इंडिया’ में वे शाहरुख नहीं बल्कि कोच कबीर खान नजर आएँ। उनके अभिनय ने फिल्म को अतिरिक्त धार प्रदान की। ‘ओम शांति ओम’ में उन्होंने दर्शकों की खातिर कमीज भी उतार दी। यह फिल्म केवल शाहरुख के कारण सफल रही। मनोज कुमार रुठ गए तो उन्हें भी किंग खान ने मना लिया। इन दो फिल्मों की जबरदस्त कामयाबी ने शाहरुख का कद और ऊँचा कर दिया है।

सलमान खान (सलाम-ए-इश्क, पार्टनर, मेरीगोल्ड, साँवरिया)
सलमान की चार में से तीन फिल्में फ्लॉप रहीं। ‘सलाम-ए-इश्क’ और ‘मेरीगोल्ड’ सलमान ने क्या सोचकर की ये तो वे ही जानें। ‘साँवरिया’ के लिए उन्हें दोषी नहीं ठहराया जा सकता। ‘पार्टनर’ सलमान की एकमात्र हिट फिल्म रही। इस फिल्म में न केवल वे हैंडसम लगे, बल्कि गोविंदा के साथ उनकी जुगलबंदी भी खूब जमी। शादी के मामले में अभी भी वे कोई निर्णय नहीं ले पाए हैं।

अभिषेक बच्चन (गुरु, शूटआउट एट लोखंडवाला, झूम बराबर झूम, लागा चुनरी में दाग)
फिल्मों से ज्यादा जूनियर बच्चन अपनी शादी के लिए चर्चित रहें। ‘गुरु’ सफल रही। ‘झूम बराबर झूम’ में बेटे को सफलता दिलवाने के लिए बिग-बी फिल्म में आ गए, लेकिन बात नहीं बनी। ‘शूटआउट…’ और ‘लागा चुनरी में दाग’ में अभिषेक छोटी भूमिकाओं में नजर आएँ। अमिताभ के बेटे होने का लाभ अभिषेक कितने दिन उठाएँगे? जल्दी ही उन्हें अपने आपको साबित करना होगा।

सैफ अली खान (ता रा रम पम, एकलव्य)
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सैफ मियाँ का ध्यान फिल्मों पर कम और गर्लफ्रेंड्‍स पर ज्यादा रहा। फिल्में तो दो प्रदर्शित हुईं, लेकिन नाम तीन लड़कियों (रोजा, बिपाशा और करीना) से जुड़ा। चौथे खान के रूप में अपने आपको स्थापित करने में लगे सैफ की उम्मीदों को इस वर्ष करारा झटका लगा।

अमिताभ बच्चन (नि:शब्द, एकलव्य, शूटआउट एट लोखंडवाला, चीनी कम, झूम बराबर झूम, रामगोपाल वर्मा की आग)
बिग-बी को इस वर्ष ‘नि:शब्द’ और ‘रामगोपाल वर्मा की आग’ जैसी फिल्में करने के कारण बदनामी झेलनी पड़ी। ‘चीनी कम’ के रूप में वे एकमात्र सफलता दर्ज कर सकें। अभिषेक की खातिर कुछ फिल्म करने का खामियाजा भी उन्हें भुगतना पड़ा। उम्मीद की जानी चाहिए कि 2008 में अमिताभ अपने प्रशंसकों को निराश नहीं करेंगे।

जॉन अब्राहम (सलाम-ए-इश्क, नो स्मोकिंग, गोल)
जॉन को करियर के बारे में गंभीरता से सोचना चाहिए। अब तो उनके कट्टर प्रशंसक भी उनकी फिल्मों से दूर भागने लगे हैं। ‘गोल’ की नाकामयाबी से जॉन अपने समकालीन अभिनेताओं से बहुत पीछे चले गए हैं। जॉन को अभिनय में बहुत ज्यादा परिश्रम करने की जरूरत है।
संजय दत्त (एकलव्य, शूटआउट एट लोखंडवाला, धमाल, दस कहानियाँ, नहले पे देहला)
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संजय का एक पैर जेल में तो दूसरा पैर स्टुडियो में रहा। पाँच में से सिर्फ एक ‘धमाल’ कामयाब रही। अपनी पोजीशन संजू बाबा तेजी से खोते जा रहे हैं। जेल आने-जाने के कारण अब बड़े निर्माता उनको लेने से कतराने लगे हैं।

सनी देओल (काफिला, अपने, फूल एन फाइनल, बिग ब्रदर)
सनी की सफलता का सूरज बादलों के पीछे ही छिपा रहा। ‘अपने’ को छोड़ उनकी बाकी फिल्म कब आई और कब गई दर्शकों को पता ही नहीं चला। सनी के प्रशंसक अभी भी हैं, लेकिन खराब फिल्म वे कैसे देख सकते हैं? शायद इसीलिए सनी अब अपने बैनर तले थोक फिल्मों का निर्माण कर रहे हैं।

शाहिद कपूर (फूल एन फाइनल, जब वी मेट)
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बच्चा समझे जाने वाले शाहिद को ’जब वी मेट’ की सफलता के बाद अब गंभीरता से लिया जाने लगा है। उन्हें अब सोलो हीरो के रूप में फिल्में मिलनी लगी हैं। इस वर्ष को तो शाहिद जरूर याद रखेंगे। ‘जब वी मेट’ और करीना के कारण।

अजय देवगन (कैश, रामगोपाल वर्मा की आग)
अच्छे अभिनेता होने के बावजूद अजय का खराब फिल्मों में काम करना समझ में नहीं आता। अजय ने अपने आपको कुछ खास बैनरों के लिए ही सीमित कर लिया है। ‘कैश’ और ‘रामू की आग’ के रूप में आगे जाने के बजाय वे दो कदम पीछे चले गए हैं।

बॉबी देओल (शाकालाका बूम बूम, झूम बराबर झूम, अपने, नकाब, नन्हें जैसलमेर)
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अब्बास-मस्तान और यशराज फिल्म्स का साथ मिलने के बावजूद भी बॉबी फ्लॉप रहें। पापा और भैया के साथ खड़े रहने का लाभ उन्हें ‘अपने’ में मिला, लेकिन अपने दम पर हिट फिल्म बॉबी कब देंगे, उन्हें खुद पता नहीं है।

अक्षय खन्ना (सलाम-ए-इश्क, नकाब, गाँधी माय फादर, आजा नच ले)
पुरजोर कोशिशों के बावजूद अक्षय असफलता का चक्रव्यूह नहीं तोड़ पाएँ। ‘गाँधी माय फादर’ में उम्दा अभिनय के लिए उन्हें प्रशंसा मिली। अकेले के दम पर हिट फिल्म देना शायद अक्षय के लिए संभव नहीं है। बहुसितारा फिल्म करना ही अक्षय के लिए बेहतर हैं।

रितेश देशमुख (हे बेबी, कैश, धमाल)
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हास्य फिल्मों में रितेश अपनी विशेष छाप छोड़ते हैं। इस वर्ष दो हिट फिल्म उनके नाम के आगे दर्ज हैं। रितेश अपनी इमेज बदलना चाहते हैं, लेकिन निर्माता और दर्शक उन्हें कॉमेडी करते ही देखना चाहते हैं।

रितिक रोशन की इस ‍वर्ष कोई फिल्म प्रदर्शित नहीं हुई, जबकि आमिर खान की ‘तारे जमीन पर’ प्रदर्शित होने वाली है।